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________________ त्रयोदशः सर्गः २५१ से भर गया। उन्होंने प्रेमभरी आँखों से पुत्रों को देखा। राजा आँखों से ही प्रसन्नता व्यक्त करते हैं, वाणी से नहीं। जो राजाओं की आँखों को पढ़ना जानते हैं, वे ही वाक्पटु होते हैं। ३०. अथ प्रगल्भं नपतिनिजात्मजं , तमेव सेनाधिपति चकार सः। य एव नासीरतया प्रवर्तते , स एव धुर्यो भवति प्रयोजने ॥ तब बाहुबली ने अपने प्रतिभा सम्पन्न उस पुत्र (सिंहरथ) को ही सेनापति बना दिया। जो पुरुष अग्रणी होकर प्रवृत्त होता है वही, प्रयोजन उपस्थित होने पर प्रमुख बन जाता है, नेता बन जाता है। ३१. अमुं चमूनाथमवाप्य सैनिका , मुदं परां प्रापुरुदग्रतेजसम् । __ महान्धकारे रजनीमुखे जनाः, करे सदीपे न मुदं वहन्ति के ? उस प्रचण्ड तेजस्वी सेनापति को पाकर सारे सैनिक बहुत प्रसन्न हुए। ऐसे कौन व्यक्ति होंगे जो सघन अन्धकार वाली रात्री में दीपक वाले हाथ को पाकर प्रसन्न न होते हों ? ३२. अमंसत श्रीबहलीक्षितीशितुर्भटास्तदौत्सुक्यरसात् कलेरिति । युधो व्यवायो' रजनी यतो हि नो , रविं विननां न हि कोप्यपास्यति ॥ युद्ध करने की अत्यन्त उत्सुकता के कारण बाहुबली के सुभटों ने यह माना कि यह रात हमारे युद्ध के लिए विघ्न हो रही है। सूर्य के बिना इसे कोई भी दूर नहीं कर पायेगा। . ३३. भविष्यति श्वः समरो नरेशितुनरा वदन्तीति निशम्य कैश्चन । किमद्य नो युद्धयत एवमूहितं , रताहवौ मोदयुतौ हि भाविनौ ॥ राजा के लोग यह कह रहे हैं कि 'कल युद्ध होगा।' यह सुनकर कुछ सुभटों ने यह तर्कणा की कि क्या आज युद्ध नहीं होगा ? युद्ध में रत होने पर ही वे दोनों भाई (महारथ और सिंहरथ) मोदयुक्त होंगे। ३४. मधुव्रतवातसहोदरं तमः , ससार सर्वत्र दृशीव कज्जलम् । ... रुषो रजन्यामिति दोष्मतां पुनः , प्रसस्र रद्यापि कियत्यसौ तता। १. नासीरतया–अग्रगामितया। २. व्यवायः-विघ्न (विघ्नेन्तरायप्रत्यहव्यवाया:-अभि० ६।१४५)
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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