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________________ १५. भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् "पिताश्री ! आप हमारे उस प्रकार के युद्ध को देखें और अपने मन में प्रसन्न रहें। जिस पिता के पुत्र शत्रुओं की सेना को भगा देने में समर्थ होते हैं, वही पिता इस संसार में कीतिमान होता है।' २५. अपेत तातस्तनुजैरकिञ्चनैः , पितामहः श्रीवषभध्वजोपि नः । युयुत्सवोऽतस्तनुजाश्च भूभुजो , भवन्निदेशात् प्रसरन्तु संयते । 'निर्वीर्य पुत्रों से हमारे पिता आप और हमारे पितामह ऋषभदेव भी लज्जित होंगे। इसलिए हम और ये सारे राजा युद्ध करने के इच्छुक हैं । आपकी आज्ञा, से ये युद्ध के लिए प्रसरण करें।' २६. कृतं स्वनामापि न येन विश्रुतं , भुवस्तले जीवति वाऽनुपद्रवम् । ... स एव पश्चात् पितुरेष किं जनः , करिष्यति ह्यात्मभुवः पितुर्मुदे ॥ . 'जो पुत्र अपने पिता की जीवित अवस्था में ही अपने नाम को निर्विघ्न रूप से विश्रुत नहीं कर देता, वह पिता के मर जाने पर क्या करेगा? क्योंकि पुत्र ही पिता के लिए आनन्ददाता होते हैं।' २७. यदा समेता समरे तवाग्रजस्तदेव तातेन रणो विधित्स्यते । द्वयोः समानत्वमवाप्य सङ्गरे , मनोजयश्रीरपि संशयेत हि ॥ 'जब आपके बड़े भाई युद्ध-स्थल में आयें, उसी समय आप उनके साथ लड़ें। युद्ध में दोनों की समानता देखकर मन रूपी विजयलक्ष्मी भी संशय में पड़ जाएगी।' २८. ततोऽनुमन्यस्व रणाय भूभुजो , निजांस्तनजांश्च परं निषिध्य मा। कथं सुता बाहुबलेर्बलोत्कटा , भवन्ति नो वाचमिति श्रयेम यत् ॥ "इसलिए आप राजाओं और अपने पुत्रों को रण के लिए प्रस्थान करने की आज्ञा दें। परन्तु आप निषेध न करें। अन्यथा हमें यह सुनने को मिलेगा कि बाहुबली के पुत्र पराक्रमी नहीं हैं।' २६. इ । णि स्वरमुदात्तविक्रमे , प्रसादमाधत्त नृपो दृशाङ्गजे । नृपाः प्रसीदन्ति दृशैव नो गिरा , विदुर्दशं येऽत्र त एव वाग्मिनः । पुत्रों का उदात्त पराक्रम और हर्षोत्फुल्ल वाणी को सुनकर बाहुबली का मन प्रसन्नता १. विधूच्–संराद्धौ इति धातोः तुबादेः मध्यमपुरुषस्य एकवचनम्। .
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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