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________________ २३४ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् ३२. सामन्तभूमन्त इमेप्यनेके , त्वया व्यजीयन्त यथा सुखेन । तथा न संभाव्यमिहानलस्य , जलेन शान्तिहि न वाडवाग्नेः॥ . 'इन अनेक सामन्तों और भूमन्तों को तुमने जैसे सुखपूर्वक जीत लिया है, वैसे ही यहां मत समझ लेना। क्योंकि अग्नि को जल से शान्त किया जा सकता है, किन्तु वडवानल जल से शान्त नहीं होता।' ३३. विश्वंभराचक्रजयो ममापि , तदेव साफल्यमवाप्स्यतीह। .. जेष्ये यदाऽहं बहलीक्षितीशं , वातो दुपातान न हि शैलपाती ॥ . . 'सारे भूमण्डल को जीतने की मेरी सफलता तब ही होगी जब मैं यहां बाहुबली को जीत लंगा। वृक्षों को उखाड़ने मात्र से पवन पर्वत को उखाड़ने वाला नहीं हो जाता।' ३४. कल्पान्तकालेयसहस्रभानोरिव प्रतापोस्य पताकिनीनाम् । दुरुत्सहस्तत्र विभावनीयश्छनायितुं को ध्वजिनीश ! तूर्णम् ॥ .. 'उस बाहुबली की सेनाओं का प्रताप प्रलयंकारी सूर्य की तरह अत्यन्त दुःसंह है। सेनापति ! उससे बचने के लिए छत्र कौन बनेगा- इसका तुम शीघ्र विचार करो।' .३५. इत्थं गिरं भारतवासवस्य , निशम्य स व्याहत सैन्यनाथः । किं देवदेवप्रणतांहिपद्मा ! , ऽद्यातङ्कशकुर्मनसाऽध्यरोपि? सेनापति सुषेण ने भरत चक्रवर्ती की वाणी सुनकर कहा-'इन्द्रों द्वारा प्रणत चरणकमल वाले स्वामिन् ! आज आपने अपने मन में भय का शल्य क्यों आरोपित कर रखा है ?' ३६. महीभृदुत्तंस ! मरुज्जयेऽपि', नासीद् वचोव्यक्तिरमदृशी ते । उत्पाटितानेकशिलोच्चयस्य , युगान्तवातस्य पुरो द्रुमाः किम् ? 'हे राजाओं के शिरोमणी भरत ! देवताओं पर विजय पाने के अवसर पर भी आपने ऐसी बातें नहीं कही थीं। जिस प्रलयंकारी पवन ने अनेक पर्वतों को उखाड़ फेंका है, उसके लिए वृक्षों को उखाड़ फेंकना कौनसी बड़ी बात है ?' ३७. तीर्थ त्वयाऽसाध्यत मागधादि , निःशङ्कचित्तेन धराधिराज !। ततः पुरस्ते किमयं क्षितीशः , को भारभृन्नागपतेः पुरस्तात् ? । १. मरुत्-देवता (गीर्वाणा मरुतोऽस्वप्नाः—अभि० २।३)
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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