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द्वादशः सर्गः
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'ऐसा युद्ध आपने पहले कभी नहीं देखा है इसलिए आप संग्राम में सावधान रहें। जिसके हृदय में धैर्य सदा क्रीड़ा करता रहता है, वही धीर व्यक्ति यहां रण में लड़ सकेगा।'
२७. श्रीआदिदेवस्य तनूरुहत्वान्न विस्मयो बाहुबलेर्बले मे।
भटास्तदीया मम सैन्यनीरनिधिं विलोक्याजदधते च धैर्यम् ॥
'बाहुबली ऋषभ के पुत्र हैं, इसलिए मुझे उनके बल में कोई विस्मय नहीं है। उनके सुभट मेरे सैन्य रूपी समुद्र को देखकर धैर्य धारण करते हैं।'
२८. ये धैर्यवन्तः पुरतः सरन्तु , तेऽत्यन्तमौदार्यगुणावदाताः।
विशेद्धि यन्मानसकन्दरेषु , निरन्तरं शौर्यहरिः स शक्तः ॥
"जो धैर्यवान् हैं और औदार्य गुणों से अत्यन्त निर्मल हैं वे आगे चलें। जिसकी मन रूपी कन्दरा में शौर्य रूपी सिंह निरन्तर रहता है, वही शक्तिशाली होता है।'
२६. रथाश्च वाहाश्च गजाश्च सर्वे , पदातयश्चापि भवन्तु सज्जाः ।
नृदेवविद्याधरकुञ्जरेषु , रणो न हीदृग् भविता जगत्याम् ॥
'सभी रथ, घोड़े, हाथी और पदाति सैनिक सज्जित हो जाएं। इस संसार में विशिष्ट मनुष्यों, देवों और विद्याधरों में इस प्रकार का युद्ध कभी नहीं होगा।'
३०. सुषेणसैन्याधिपते ! स्वसैन्यं , विलोकय त्वं मम सन्नियोगात् ।
दोर्दण्डकण्ड तिरिहाप्यशेषा , भटै जेभ्यो हि निवारणीया ॥
'सेनापति सुषेण ! तुम मेरी आज्ञा से अपनी सेना का निरीक्षण करो। सुभटों की भुजाओं में खाज चल रही है। उसका सम्पूर्ण निवारण इस रण में भुजाओं से ही करना होगा। ३१. कालं त्वियन्तं न मयाजिलीला, चक्रे स्वयं सापि करिष्यतेऽत्र । .
__भानोरनूरुः पुरतो निहन्ति , तमस्तमं जेतुमलं न कोऽपि ॥
'मैंने स्वयं इतने समय तक युद्धलीला नहीं की, किन्तु आज मुझे वह करनी होगी। सूर्य का सारथि सूर्य के आगे अन्धकार का नाश करता है किन्तु राहु को जीतने में सूर्य के सिवाय कोई समर्थ नहीं होता।'
१. तमः-राहु (तमो राहुः सैहिकेयो–अभि० २।३५)