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भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् बिना वीर सुभटों के राजा युद्ध को जीत नहीं सकते। क्योंकि महान् बैल ही धुरा को वहन करने में समर्थ होते हैं, दूसरे नहीं।'
५. युद्धे कृतोद्योगविधौ क्षितीशे , भवन्ति वीराः प्रतिपक्षजित्यै। . साहाय्यमाधातुमलं हि वह्न, समीरणा एव पुरः सरन्ति ॥
'जब राजा युद्ध के लिए प्रस्तुत होता है तब शत्रु पर विजय पाने के लिए वीर सुभट ही सहायता देने में समर्थ होते हैं। जैसे अग्नि के प्रज्वलन को सहायता देने वाला पवन ही आगे-आगे चलता है।'
६.
भवासवा' भूग्रहणककामा , व्रजर्भटानामविलङ्घनीयाः । वन? माणामिव सानुमन्तो', भवन्ति विद्वेषिधराधिराजः ॥
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'जो राजा शत्रुओं की भूमी को लेने के इच्छुक होते हैं वे अपने वीर सुभटों के समूहों के कारण शत्रु-राजाओं से अजेय बन जाते हैं, जैसे कि सघन वृक्षों वाले वनों से पर्वत अजेय बन जाते हैं।'
७. मुखं भटानामवलोक्य राजा , करोति युद्धं विहितारिदैन्यम् । ___ अम्भोधराम्भोभरदूरपूरानुगा भवेयुहि नदीप्रवाहाः ॥
'राजा अपने वीर सुभटों के मुख को देखकर ही सत्रुओं को दीन बनाने वाला युद्ध लड़ता है। क्योंकि मेघ के पानी का दूरवर्ती पूर जब पीछे होता है तभी नदी का प्रवाह आगे बढ़ता है ?'
८. बलोत्कटं भूपमवाप्य युद्ध. , माद्यन्ति वीरा अपि पृष्ठलग्नाः ।
सारङ्गनेत्रावपुरेत्य किं न , तारुण्यलीलाः परिमादयन्ति ?
'युद्ध-स्थल में पराक्रमी राजा को पाकर अनुगामी वीर सुभट भी हर्षोत्फुल्ल हो जाते हैं। क्या सुन्दरियों के शरीर को पाकर यौवन की लीलाएं चारों ओर नहीं नाच उठती ?'
महाभुजः संप्रति योद्धकामो , महाबलो बाहबली समेति । तत्सङ्गरोत्सङ्गमुपेयिवद्भिर्दैन्यं न नाट्य पुरतो भवद्भिः ॥ .
१. भूवासव:--राजा । २. सानुमान् पर्वत (गोत्रोऽचलः सानुमान्-अभि० ४।६३)
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