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द्वादशः सर्गः
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'महान् पराक्रमी, महान् भुजाओं का धनी बाहुबली आज युद्ध करने के लिए आ रहा है-यह सोचकर उसके साथ युद्ध करने के इच्छक आप अपने समक्ष दीनता को न आने दें।'
१०. सैन्यः समेता रचितारिदैन्यबन्धुर्मम श्वः सहसत्वरो' माम् ।
स्वःशैवलिन्योघ' इवाम्बुराशि , पाथीभरैः पातितपादपौधः॥
'जैसे वृक्षों के समूह को धराशायी करने वाला तथा पानी से भरा-पूरा गंगा नदी का प्रवाह समुद्र में जा मिलता है वैसे ही मेरा भाई बाहुबली शत्रुओं को दीन बनाने वाली अपनी सेना के साथ कल शीघ्र ही मुझ से आ मिलेगा।'
११. बलोत्कटरेव भटैस्तदीयैश्चेतश्चमत्कारि तथा व्यधायि ।
जगज्जनानां न यथेतरेषां , हृदोवकाशं बलमश्नुतेऽतः॥ 'बाहुबली के अत्यन्त पराक्रमी भटों ने चित्त को चमत्कृत करने वाला ऐसा कार्य किया कि जगत् के दूसरे लोगों के पराक्रम के लिए हृदय में अवकाश ही नहीं रहा।'
१२. करैरिवांशुर्मकरैरिवाब्धिहदैस्तटिन्योघ इवातिदुर्गः । ... तनूजलक्षैः परिवारितोयं , मामेति रोद्धं तमवच्छशाङ्कम् ॥
'जैसे किरणों से सूर्य, मगरमच्छों से समुद्र और अथाह जलवाले नद से नदियां अत्यन्त दुर्गम होती हैं, वैसे ही यह बाहुबली अपने लाखों पुत्रों से परिवारित होकर मुझे रोकने के लिए आ रहा है, जैसे अन्धकार चन्द्रमा को रोकने के लिए आता है।'
१३. · अपि प्रभूता ध्वजिनी मदीया , तनीयसश्चापि बलस्य तस्य । . रणे कञ्चित्समतां गमित्री , जयावहा वीरभुजा हि नान्यत् ॥
'यद्यपि मेरी सेना बहुत विशाल है और उसकी सेना छोटी है, फिर भी संग्राम में । ज्यों-ज्यों समान हो जाएगी। पराक्रमी सेना ही विजयवती होती है, छोटी-बड़ी नहीं।'
१४. ततो भटीभय भवद्भिराजि निर्व्याजमाधायि पुराऽधुनापि ।
विधीयतां वीरवसन्तसत्त्वं , सर्वत्र वः शाश्वतमायुगान्तात् ॥
१. सहसत्वरः-सत्वरेण सहित:-शीघ्र। २. स्वःशैवलिनी-गंगा। ३. आजिः-युद्ध (आस्कन्दनाजिः--अभि० ३।४६१)