SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् २२२ ८९. इत्यमी बहवो वीराः , संयते समुपस्थिताः। उदयादेव तीक्ष्णांशोः , करा धार्या न केनचित् ॥ 'इस प्रकार ये अनेक वीर योद्धा संग्राम के लिए प्रस्तुत हैं। सूर्य के उदयकाल में ही उसकी कोमल किरणों के बारे में कोई धारणा नहीं बना लेनी चाहिए।' .१०. वाचालमौलिमाणिक्य ! , वाचालत्वं वथैव रे !। __ कि नाट्येत पुरोस्माकं , बहिणामिव केनचित् ? 'हे वाचालों के मुकुटमणि ! तुम्हारी वाचालता व्यर्थ है । क्या हमारे समक्ष कोई मयूर की भांति नाच सकता है ?' .. ६१. दाक्षिण्याद्देवपादानामनाक्षेप्यो भवान् मया। मा दैन्यं कुरु सैन्यस्य , स्वरं प्रक्रामतो युधे ॥. 'तुम स्वामी के अनुकूल हो इसलिए मैं तुम्हारा तिरस्कार नहीं करता । युद्ध में इच्छानुसार लड़ने वाली सेना में दीनता मत भरो।' १२. इत्युक्तोऽनिलवेगेन , स मन्त्री मौनमाचरत् । संलीनभ्रमराम्भोजराजीव रजनीमुखे ॥ . 'अनिलवेग के इस प्रकार कहने पर मंत्री वैसे ही मौन हो गया जैसे संध्याकाल में भ्रमरों से संयुक्त कमल-समूह शांत हो जाता है, मौन हो जाता है।' ६३. इत्थं विज्ञाय वीराणां , युद्धोद्धृतोत्सुकं मनः। जयश्रीनपुराणीव , नृपो वाद्यान्यवीवदत् ॥ 'इस प्रकार अपने वीर सुभटों का युद्ध के लिए अत्यन्त उत्सुक मन को जानकर बाहुबली ने विजयश्री के नूपुरों की भांति युद्ध के बाजे बजवा दिए।' ६४. अमुना कीत्तिसुधया , वयं शुचितमाः कृताः । तैनिःशङ्कस्तुतो दूराद् , दिग्मुखैमुखरैरिति ॥ १५. सर्वत्र रोदसी कुक्षिभरिभिर्ध्वजिनीभरैः। अनुद्र तः सुवर्णाद्रिरिव मन्दारभूरुहैः । ६६. छत्रचामरचारुश्रीहारकुण्डलमण्डितः। साक्षाच्छक इवोत्तीर्णस्तेजसाप्योजसा भुवम् ॥
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy