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________________ एकादशः सर्गः . २२९ ८३. परक्षमाक्रमणोहीमविक्रमी सिंहविक्रमः। यमायान्तमुपाकर्ण्य , वैरिभिर्ययिरे नगाः ॥ 'यह 'सिंहविक्रम' शत्रुओं की भूमि पर आक्रमण करने के लिए प्रचंड पराक्रमी है।। इसको आते हुए सुनकर शत्रु पर्वतों में जा'छुपते हैं।' ८४. सिंहसेनोऽरिसेनासु , केशरीव बलोत्कटः । क्ष्वेडाभिर्गजसेनासु , मददुभिक्षमातनोत् ।। 'यह 'सिंहसेन' अत्यन्त पराक्रमी है। यह शत्रुओं की सेना में केशरीसिंह की भांति है । इसने अपने सिंहनाद से हाथियों की सेना को निर्वीर्य बना डाला था।' ८५. इत्यमी तनयाः पञ्च , देवपादस्य विश्रुताः। बाणाः पञ्चेव पञ्चेषोः , कस्य पञ्चत्वदा न हि ? 'बाहुबली के ये पांचों पुत्र अत्यन्त विश्रुत हैं। ये पांचों कामदेव के पांच बाणों की भांतिः किसको मृत्युधाम तक नहीं पहुंचा देते ?' ८६. मूर्छाला मेदिनीपालाः , सन्त्यन्येऽपि सहस्रशः। संग्रामायोपतिष्ठन्ति , सज्जीकृतमहायुधाः ॥ 'और भी हजारों 'मूचाले' (मूंछवाले) राजे ऐसे हैं जो अपने-अपने शस्त्रों को सज्जित' कर युद्ध.की प्रतीक्षा में बैठे हैं।' ८७. अयं वैरिवधूहारसंहारपरिदीक्षितः। रत्नारिदेवपादेभ्यः , पुरो भवति संयते ॥ 'यह 'रत्नारि' युद्ध के समय अपने स्वामी बाहुबली के आगे रहता है। यह शत्रुओं की स्त्रियों के हारों को तोड़ने में अभ्यस्त है अर्थात् यह उनको विधवा बनाने में दक्ष है।' ८८. लक्षत्रयो तनूजानां , नृपबाहुबलेः श्रुता। जेतुं तदन्तरेकोऽपि , विभुर्विद्वषिवाहिनीम् ।। 'महाराज बाहुबली के तीन लाख अंगज हैं। उनमें से प्रत्येक वीर शत्रुओं की सेना को जीतने में समर्थ है।'
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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