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________________ एकादशः सर्गः . २१६ 'महान तेजस्वी आप ही अकेले ऐसे हैं जो अपने ज्येष्ठ भ्राता भरत को निवारित कर सकते हैं । किन्तु उनके चक्र से उद्गत अग्नि की ज्वालाएं आपके सैनिकों को तृण की भाँति भस्मसात् कर डालेंगी।' ७३. तद् विचार्य महीपाल ! , कुरुष्वात्महितं त्विति । ताततुल्यमिमं ज्येष्ठं, भ्रातरं भरतं नम॥ 'इसलिए हे राजन! आप अपने हित की बात सोचकर पिता तुल्य अपने इस ज्येष्ठ भ्राता भरत को प्रणाम करें।' ७४. इति मन्त्रिगिरा क्रुद्धो, यावद् वक्ति क्षितीश्वरः। तावद् विद्याधराधीशोऽनिलवेगस्तमभ्यषात् ॥ 'मंत्री के ये वचन सुनकर बाहुबली अत्यन्त कुपित हो गए ।' वे कुछ कहने ही वाले थे कि विद्याधरों के अधिपति अनिलवेग ने मंत्री से कहा ७५. सचिवोत्तंस ! निस्त्रिशं', वथैव वदनानिलः । आत्मदर्शमिवोद्दीप्रं, कश्मलीकुरुषे प्रभोः॥ 'सचिव शिरोमणे ! तुम अपने मुख के श्वासों से व्यर्थ ही अपने स्वामी बाहुबली की . कांच की भांति निर्मल तलवार को मलिन कर रहे हो ।' ७६. प्रार्थ्यमानश्चिरं युद्धोत्सवो वीरमनोरथः। चांतरिवपाथोदस्तत्र वात्यायते' भवान् ॥ . 'मंत्रीवर्य ! हमारे वीर सुभट इस रणोत्सव की चिरकाल से प्रतीक्षा कर रहे थे । आज उनका मनोरथ वैसे ही सफल हो रहा है जैसे जलधर से चातकों का मनोरथ फलित होता है। ऐसी स्थिति में तुम प्रचंड पवन की तरह आचरण कर रहे हो।' . . ७७. कोऽतिरिक्तगतिश्चित्ताज्ज्वलनात् कः प्रतापवान् ? कः पण्डितः सुराचार्यात् , को घेवादधिको बली? १. निस्त्रिश:-तलवार (करवालनिस्त्रिशकृपाणखड्गा:--अभि० ३।४४६) २. वात्यायते--वातूलवदाचरति । ३. जैसे पवन जलधर को बिखेर देता है वैसे ही तुम वीर सुभटों के उत्साह को बिखेर रहे हो, नष्ट कर रहे हो। .
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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