SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् ६७. एनं सहस्रशो देवा , बद्धाञ्जलिपुटाः सदा। सेवन्ते सर्वदं वर्णमोङ्कारमिव योगिनः ॥ 'हाथ जोड़े हुए हजारों देवता सदा महाराज भरत की उपासना करते हैं, जैसे योगीजन सब कुछ देने वाले 'ओंकार' वर्ण की उपासना करते हैं।' ६८. सुषेणोप्यस्य सेनानीः , सेनानी'रिव दुर्जयः। परीतोऽनेकगीर्वाण विनीत इव सद्गुणैः ।। 'भरत का सेनापति सुषेण भी कात्तिकेय की भांति दुर्जेय है। जिस प्रकार विनीत व्यक्ति सद्गुणों से युक्त होता है, वैसे ही वह अनेक देवताओं से परिवृत है।' ६९. अस्यैव भुजमाहात्म्याद् , वैरिणो नेशुरग्रतः । ___ चक्रवागमस्तेषां , पुनरुक्तिरिवाऽभवत् ॥ 'सेनापति सुषेण के भुजबल से भयभीत होकर शत्र पहले ही दौड़ जाते थे । चक्रवर्ती का आगमन उनके लिए पुनरुक्ति जैसा है-अर्थहीन है।' ७०. अस्य सूर्ययशा ज्येष्ठसूनुरन्यूनविक्रमः। मन्यते स्वभुजौजित्याद् , यः शक्रमपि किङ्करम् ॥ 'भरत के ज्येष्ठ पुत्र का नाम है सूर्ययशा। वह अत्यन्त पराक्रमी है। वह अपने भुजपराक्रम से इन्द्र को भी किंकर मानता है।' ७१. अन्येपि बहवो वीराः , सन्त्यस्य प्रबला बले । धतु तदन्तरेकोऽपि', सहिष्णुः पर्वतानपि ॥ 'भरत की सेना में इस प्रकार के और भी अनेक पराक्रमी वीर सुभट हैं। उनमें एकएक वीर ऐसा है जो पर्वतों को उठाने में भी समर्थ है।' ७२. एक एव महातेजास्त्वं रोद्धा ज्येष्ठमार्षभिम् । धक्ष्यन्त्यमूस्तृणानिव , चास्य चक्रदवाचिषः ॥ १. सेनानी:-कात्तिकेय (स्कन्दः स्वामी महासेनः सेनानीः शिखिवाहन:-अभि० २।१२२) २. गीर्वाणा:-देवता (गीर्वाणा मरुतोऽस्वप्ना:--अभि० २१३) ३. तदन्तर-तेषां वीराणां मध्ये, एकोऽपि ।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy