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________________ एकादशः सर्गः २१७ 'आपके कुल में भरत ज्येष्ठ हैं और चक्रवर्ती हैं। इसलिए आप वहाँ जाकर उनको प्रणाम करें। इसमें आपको कोई लज्जा नहीं है।' . ६२. एतस्मै न नताः के कै स्याज्ञा शिरसा धृता। कैरातकोस्य नो दधे , बलिनो जयिनोऽत्र हि ॥ 'भरत के आगे कौन राजे नत नहीं हुए ? किन राजाओं ने इनकी आज्ञा शिरोधार्य नहीं की ? किसने इनका भय नहीं माना ? क्योंकि इस संसार में बलशाली व्यक्ति ही विजयी होते हैं।' ६३. बलं यदीयमालोक्य, सुरा अपि चकम्पिरे। __मर्त्यकीटास्ततः केऽमी , पुरस्तादस्य भूभुजः ? 'उनके पराक्रम को देखकर देवता भी प्रकंपित हो गए हैं। उनके सामने इन मनुष्यकीट राजाओं की बात ही क्या ?' . ६४. षट्खण्डी किकरीभूय , सेवतेऽस्य पदाम्बुजम् । रजनीव सुधाभानु'ममन्दानन्दकन्दलम् ॥ 'छहों खंड सेवक की भांति महाराज' भरत के चरण-कमलों की सेवा करते हैं, जैसे रात अधिक आनन्ददायक चन्द्रमा की सेवा करती है।' ६५. वां विना कोपि विश्वेऽत्र , न्यक्करोत्यस्य शासनम् । .. राहोरेव पराभतिविद्यते हि त्रयोतनोः ॥ "आपके बिना. इस विश्व में चक्रवर्ती भरत के अनुशासन का कोन तिरस्कार कर सकता है ? सूर्य के लिए राहु. ही पराभव है, दूसरा कोई नहीं।' ६६. द्वात्रिंशन्मेदिनीपालसहस्राण्यस्य किङ्कराः । अनुणीकर्तुमात्मानमोहन्तेप्यसुभी रणे । 'चक्रवर्ती भरत के बत्तीस हजार राजे सेवक हैं । वे युद्धस्थल में प्राणों की बलि देकर भी अपने-आपको उऋण करना चाहते हैं।' .१. सुधाभानु:-चन्द्रमा। २. वयीतनुः--सूर्य (नयोतनुर्जपच्चक्षुः-अभि० २।१२)
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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