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________________ २१६ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् ५६. आक्रामति परक्ष्मां यः , स एव सबलो नृपः। ___ अर्कतूलानि तिष्ठेयुश्चेहि किं विभुमरुत् ? 'जो राजा अपने शत्रु की भूमि पर आक्रमण करता है वही सबल होता है। पवन के चलने पर यदि अर्कतूल शेष रह जाए तो उस पवन का सामर्थ्य ही क्या ?' ५७. बलादाच्छिद्य भूपाल बन्धुभ्योऽपि गृह्यते । ग्रहाणामपि तेजांसि , विवस्वान् हरते न किम् ? ... "राजे अपने बंधुओं से भी भुमी को बलपूर्वक छीनकर ग्रहण कर लेते हैं । क्या सूर्य ग्रहों के तेज का हरण नहीं करता ?' । । ५८. निर्बलोऽपि परः स्वामिन् ! , प्रबलः परिभाव्यते। पृथिव्यर्थे हि को युद्धं , न करोत्यत्र सर्वथा ? 'स्वामिन् ! शत्रु निर्बल होते हुए भी सबल ही माना जाता है । क्योंकि इस भूमि के लिए सबल या निर्बल कौन युद्ध नहीं करता ?' ,' ५६. अनम्रा यदि सर्वेपि , सर्वेपि छत्रिणो यदि । तहि लोकत्रयीमध्ये , का कोत्तिश्चक्रवर्तिनः ? 'यदि सभी राजे अनम्र हो जाएं और यदि सभी छत्रधारी हो जाएं तो फिर तीनों लोकों में चक्रवर्ती की कीत्ति ही क्या रह जाएगी?' .. ६०. संप्रति कोशलास्वामी , त्वामभ्येति चमूवृतः।। ___ सराति रिवानन्तं', पीताब्धि रिव सागरम् ॥ 'अभी कोशल देश के स्वामी भरत सेनाओं से परिवृत होकर आपके पास उसी प्रकार आ रहे हैं जैसे शेषनाग के पास गरुड़ और सागर के पास अगस्त्य ऋषि आते हैं।' ६१. अयं भवत्कुले ज्येष्ठश्चक्र ययं च भवत्कुले । त्वमेनं नम तद् गत्वा , न त्रपा तव काचन ॥ १. परः-शत्रु । २. सारातिः-गरुड (सारातिर्वजिजिवज्रतुण्ड:-अभि० २।१४५) • ३. अनन्तः-शेषनाग (शेषो नागाधिपोऽनन्तो–अभि० ४।३७३) ४.पीताब्धि:--अगस्त्यऋषि (अगस्त्योऽगस्तिः पीताब्धि:--अभि०
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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