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________________ एकादशः सर्गः २१३ ४१. सुधामय इवानन्दमयस्त्विव तदाऽभवत् । .. स क्षणः सक्षणो युद्धाकांक्षिभिर्बलिभिर्मतः॥ 'चक्रवत्तिन् ! उस समय वह क्षण अमृतमय और आनन्दमय बन गया था। युद्ध के आकांक्षी पराक्रमी सुभटों ने उस क्षण को एक उत्सव के रूप में माना।' .. ४२. दोर्दण्डचण्डिमौद्धत्याद् , ये तृणन्ति जगत्त्रयम् । तेऽपि वीरा यशःक्षीरार्णवास्तं प्रययुस्तदा ॥ 'जो वीर अपनी भुजाओं की चंडिमा से उद्धत होकर तीनों लोकों को तृणवत् तुच्छ मानते हैं और जो कीत्ति के क्षीर-समुद्र हैं वे भी. संग्राम के समय बाहुबली के पास चले गए।' ४३. मन्दरा इव प्रथिवाहिनीश्वरमन्थने । भूभृतश्चण्डदोर्दण्डशाखिनः केऽपि तं ययुः॥ 'कई राजे जो शत्र रूपी समुद्र का मन्थन करने में मेरु पर्वत की भांति थे और जो प्रचंड भुजा रूपी शाखा वाले थे, वे, भी बाहुबली के पास पहुँच गए।' ४४.. ये भवन्तमवज्ञाय , नृपं बाहुबलि श्रिताः । तेऽपि विद्याधराधीशा , अभूवन प्रगुणा युधे । 'राजन् ! जो विद्याधरों के स्वामी आपकी अवज्ञा कर महाराज बाहुबली की शरण में चले गएं, वे भी आज संग्राम के लिए सन्नद्ध हो रहे हैं।' . ४५. विद्याधरवधूवर्गवैधव्यक्तदानतः। ___यस्यासि गुरुवद्वन्द्योऽनिलवेगः स दुःसहः ॥ 'राजन ! विद्याधरों की स्त्रियों को वैधव्य की दीक्षा देने के कारण जिसकी तलवार १. क्षणः-अवसर (समये क्षण:-अभि० ६।१४५) २. सक्षण:-सोत्सवः (उत्सवे-महः क्षणोद्धवोद्धर्षा-अभि० ६।१४४) ३. प्रगुणा:-सज्जाः । ४. युधे-संग्रामाय। ५. व्रतदानं-दीक्षार्पणम् । ६. असिः-तलवार (असिऋष्टिरिष्टी-अभि० ३।४४६)
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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