SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० . भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् . १५. सर्वोत्तरासङ्गविधि विधाय , विवेश राजा जिनराजवेश्म । स निवृते रास्यमिवाभिरुच्यं', सुवर्णभास्वत्कमनीयताढ्यम् ॥ महाराज भरत ने सारी उत्तरासंग-विधि सम्पन्न कर मन्दिर में प्रवेश किया। वह मन्दिर मोक्ष के मुख की भाँति मनोज्ञ, स्वर्ण की तरह देदीप्यमान और सुन्दरता से परिपूर्ण था। १६. प्रदक्षिणीकृत्य धराधिपस्त्रिश्चकार पञ्चाङ्गनति युगादेः। .. तीथशनत्यैव हि नम्रभावं , भजन्ति भूपा अपि शुद्धिमत्या ॥ ..' महाराज भरत ने तीन बार प्रदक्षिणा कर ऋषभ को पंचांग नमस्कार किया । क्योंकि तीर्थंकर को पवित्रतायुक्त नमस्कार करने से ही राजा भी दूसरे राजाओं से नमस्कृत होते हैं। १७. न चातिदूरान्ति कसन्निषण्णः , संयोज्य पाणी भरताधिराजः।। तुष्टाव तीर्थेशमिति प्रतीतः , पदैरनेकैः किल. ताररावैः ॥ महाराज भरत ऋषभ की प्रतिमा के सम्मुख, न अति दूर और न अति निकट, हाथ जोड़कर बैठ गए। उन्होंने उच्च स्वर से अनेक परिचित पदों द्वारा तीर्थंकर ऋषभ की स्तुति की १८. भवं तितीर्षो विनस्त्वमेवाधारस्त्रिविश्वाच॑पदारविन्द !। त्वमेव पाता तमसस्त्रिलोकी , सृष्टेविधाता भवतो न चान्यः ।। 'तीनों लोकों में पूजनीय चरण वाले भगवन् ! संसार रूपी भव से तैरने के इच्छुक प्राणियों के लिए तुम ही आधार हो। तुम ही तीनों लोकों को अन्धकार (पाप) से उबारने वाले हो । तुम से भिन्न कोई सृष्टि का विधाता नहीं है।' . १६. त्वमेव संसारदवाग्निदाहप्रशान्तये वारिदवारिधारा। त्वमेव पीताब्धिरघाम्बुराशिशोषकदक्षत्वविजिनेन्द्र ! ॥ १. निर्व तिः-मोक्ष । २. अभिरुच्यं–मनोज्ञम् । ३. उत्तरीय वस्त्र को मुह पर बांधना। ४. पांच अंग-दो हाथ, दो घुटने और एक मस्तक । ५. पाठान्तरं-ताररावः ।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy