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. भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् . ५. चमचरान केतक कण्टकैः सा , तुतोद यूनो वनराजिलक्ष्मीः ।
किलोपरिष्टात् पततो विमान , नखैरिवात्यन्तकठोरधारः ॥
जब सेना उस उद्यान में प्रविष्ट हुई तब सेना के युवक सुभट वहां के केतकी के वृक्षों से संघट्टन कर चलने लगे। उस संघट्टन से उस वृक्ष के कांटे ऊपर से नीचे गिरने लगे। उस वनराजि' की लक्ष्मी ने उन युवक सुभटों को नखों की भाँति अत्यन्त कठोर अग्रभाग वाले केतकी के काँटों से पीड़ित किया।
६. फुल्लल्लतामण्डपमध्यमीये , केचिन्निषेदुनिलयाभिरामे ।
महीरुहस्कन्धनिबद्धवाहाः , सुरा इव स्वर्गवनान्तराले ॥
जैसे देव अपने नन्दनवन के अन्तराल में आनन्दपूर्वक बैठे रहते हैं, वैसे ही कई सुभट अपने-अपने घोड़ों को वृक्षों के तनों से बांधकर, घर की भांति मनोज्ञ उस विकसित लतामंडप के बीच में आनन्दपूर्वक बैठ गए। .
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७. श्रान्ताः प्रसूनास्तरणेषु केचिन् , महाभुजः संविविशुः सुखेन।
नागाः सरस्या इव तीरदेशे , महीरुहच्छायनिवारितोष्णे ॥
जैसे आतप को निवारित करने वाले सघन छायादार वृक्षों से युक्त सरोवर के तीर पर हाथी सुखपूर्वक सो जाते हैं वैसे ही कुछ थके हुए शक्तिशाली सुभट वहाँ फूलों के बिछौने पर सुखपूर्वक निद्राधीन हो गए।
८. केचित् तरुच्छायमुपेत्य वीरा , विशश्रमुर्वासरयौवनेऽथ ।।
लतावलीनर्तनसूत्रधारस्तनूकृतस्वेदलवैर्मरुद्भिः ॥
उस मध्याह्न वेला में कुछ सुभट वृक्ष की छाया के नीचे विश्राम करने लगे। तब लतावली को नचाने वाले सूत्रधार पवन ने उनके स्वेद-बिन्दुओं को कम कर डाला।
. मन्दाकिनीतीरलतालयेषु , केचिन्निलीनाः परितप्यमानाः ।
पटालयान केऽपि वितत्य वीरा, निषेदिवांसः परितो विहारम् ॥
कुछ सुभट संतप्त होकर गंगा नदी के तट पर स्थित लतागृहों में जा बैठे .और कुछ
१. केतक:-केतकी का वृक्ष (केतक: क्रकचच्छद:-अभि० ४१२१८) २. तुतोद-तुदङ् व्यथने धातोः णबादे: रूपम् । ३. प्रसूनास्तरणम्-फूलों का बिछौना। . ४. पटालय:-तम्बू।