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________________ नवमः सर्गः १८१ सूचना दी है कि उत्तर दिशा में यहाँ से निकट ही कुबेर के कानन के समान एक सुन्दर कान है । ' ६६. 'राजन् ! वह् कानन सुन्दर फलों की अतिशय शोभा से सुशोभित है। जैसे सारे गुणों की उत्पत्ति सर्वज्ञ में वृद्धिगत होती है, वैसे ही तीनों लोकों में एक भी ऐसा वृक्ष नहीं है जो उस कानन में वृद्धिगत न हुआ हो ।' , स भूरुहो नास्ति जगत्त्रयेऽपि यः काननेस्मिन् न विवृद्धिमागात् ।" गुणोद्भवः सर्वविदीव चारुफलोल्लसच्छ्रीभरभासुराङ्ग े ॥ ६७. गीर्वाणविद्याधरसुन्दरीणां सङ्क ेतलीलानिलया नितान्तम् । 1 अनेकधा यत्र विभान्ति वृक्षाः, प्रसूनचापात पवारणानि ॥ " उस कानन में अनेक प्रकार के वृक्ष शोभित होते हैं। वे देवता और विद्याधरों की सुन्दरियों के संकेत-लीला के स्थल और कामदेव के छत्र के समान हैं ।' ६८. पुष्पशाखा उपरि भ्रमन्ती, रोलम्बराजिर्जलदालिनीला । कादम्बिनी भ्रान्तिमिहातनोति कलापिनां नृत्य रसोत्सुकानाम् ॥ 'राजन् ! इस कानून के पुष्पित द्रुमों की शाखाओं पर परिभ्रमण करती हुई, मेघमाला की भाँति श्याम वर्णवाली भ्रमर-पंक्ति, नृत्य करने के लिए उत्सुक मयूरों के लिए मेघ समूह की भ्रांति पैदा करती है ।' ७०. ६६. यदीयसौन्दर्य मुदीक्ष्य दूरान्नभो विमानेन विगाहमानः । " किनन्दनोद्यानमिदं ममेति शक्रोऽपि शङ्कां हृदये विर्भात ॥ , अपने विमान के द्वारा आकाश का अवगाहन करता हुआ इन्द्र दूर से इस कानन के सौन्दर्य को देखकर - 'क्या यह मेरानन्दन वन ही तो नहीं है - इस प्रकार हृदय में शंका करता है । , श्रीमद् द्युगादेर्जगदीश्वरस्य तदन्तरेकोऽस्ति महान् विहारः । जाम्बूनदाद्र रिव शृङ्गदेशः, किं वज्रभिन्नः कलधौत रूपः ? १. प्रसूनचापः — कामदेव | आतपवारणं - छत्र (छत्त्रमातपवारणम् - अभि० ३।३८१ ) २. कादम्बिनी – मेघ समूह ( कादम्बिनी मेघमाला -- अभि० २७६ ) ३. कलापी -- मयूर | ४. जाम्बूनदाद्रिः - स्वर्णपर्वत, मेरुपर्वत ( जाम्बूनदं - स्वर्ण - जाम्बूनदं शातकुम्भं - अभि ४।१११ ) ५. कलधौतं --- स्वर्ण ( कलधौतलोहोत्तम अभि० ४ । ११० )
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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