________________
१७८
भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् 'राजन् ! हम एक योजन भूमि को पार कर चुके हैं । फिर भी सेना को विश्राम करने का आदेश क्यों नहीं दिया जा रहा है ? देव ! आप देखें, किरणों का निधान सूर्य मध्यान्ह की वेला में क्या क्षण भर के लिए विश्राम नहीं करता' ? अवश्य करता है।'
५२. इतीप्सितं तस्य बलाधिपस्य , स स्वीचकार प्रथमो नपाणाम् ।
___ अनूरुकृत्यं दिवसाग्रभागे , ह्यलङ्घनीयं दिवसेश्वरेण ॥ .
महाराज भरत ने सेनापति सुषेण की बात स्वीकार कर सेना को पड़ाव डालने का आदेश दे दिया। क्योंकि सूर्य प्रभातकाल में अपने सारथि के कार्य का उल्लंघन नहीं करता।
५३. सैन्यस्य घोषो विपिनान्तरेऽभूत् , तदावतीर्णस्य विहङ्गमानाम् । ..
वनस्थलीप्रोड्डयनोत्सुकानां , संवर्तसंक्षुब्धपयोधिकल्पः ॥ ...
उस समय जंगल में सेना के पड़ाव के कारण वनस्थली से उड़ने के लिए समुत्सुक पक्षियों का ऐसा कोलाहल हुआ मानो कि प्रलयफाय से क्षुब्ध समुद्र गरिव कर रहा हो।
५४. सेनानिवेशा बहुशो बभूवुस्तस्य प्रयातस्य नितान्तमेवम् ।
पुरीप्रदेशाधिकविभ्रमाढ्याः , पुरं वनं पुण्यवतां हि तुल्यम् ॥
युद्ध के लिए प्रयाण करने वाली भरत की इस सेना ने अनेक बार ऐसे पड़ाव डाले थे जो कि अयोध्यापुरी के प्रदेशों से भी अधिक शोभास्पद,थे । क्योंकि सौभाग्यशाली पुरुष के लिए नगर और वन समान होते हैं ।
५५. स्वदेशसीमान्तमुपेत्य राजा , पताकिनीशेन समं रहश्च ।
स मन्त्रयित्वा प्रजिघाय चारान् , वारिप्रवाहानिव वारिवाहः॥
अपने देश की सीमा पर आकर भरत ने अपने सेनापति के साथ एकान्त में गुप्त-मंत्रणा की और जैसे मेघ पानी की धारा को चारों ओर बिखेरता है वैसे ही भरत ने गुप्तचरों को चारों ओर भेजा।
५६. करोति किं तक्षशिलाक्षितीशः , के वीरधुर्याः किल तस्य सैन्ये ?
कीदृग् बलं तस्य महोशितुश्च , ज्ञातुं नृपेणेति चरा नियुक्ताः॥
१. माना जाता है कि चक्रवर्ती एक दिन में एक योजन से अधिक नहीं चलते । २. कहा जाता है कि सूर्य मध्यान्ह की वेला में भण भर के लिए विश्राम करता है।