SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. २. नवमः सर्गः करैरिवांशोः पुरतः स्फुरद्भिः कीर्णावनीचक्रनभोन्तरालः । तेजस्विनस्तस्य नितान्ततीव्रव्र्व्याप्यन्त साकेतवनानि सैन्यः ॥ आगे से आगे प्रकट होने वाली और भूमंडल तथा आकाश में फैलने वाली सूर्य की नितान्त तीव्र किरणों की भाँति तेजस्वी भरत की सेनाएँ साकेत के वनों में व्याप्त हो गईं । , ४. भूचारिराजन्यबलातिरेकैर्मही ललम्बे सनयैरिव श्रीः । शून्यं नमो मास्त्वधुनेति विद्याधरैविमृश्याकलितं विहायः ॥ साथ जैसे न्याय परायण व्यक्ति लक्ष्मी से व्याप्त हो जाते हैं वैसे ही चक्रवर्ती भरत साथ चलने वाले राजाओं की सेनाओं भूमि व्याप्त हो गई । 'आज आकाश भी शून्य न रहे - यह सोचकर विद्याधर आकाश में फैल गए । कृतान्तवक्त्रं बहली युद्धं तत्र प्रवेशो मम सांप्रतं तत् । 1 गच्छ प्रिये ! गेहमिति न्यषेधि, कान्तेन कान्ताथ सह व्रजन्ती ॥ अपने साथ-साथ चलने वाली प्रिया का निषेध करते हुए पति ने कहा - 'प्रिये ! तू घर चली जा, मेरे साथ मत आ । बाहुबली का यह युद्ध मृत्यु के मुख के समान है । उस युद्ध में मेरा प्रवेश अभी होने वाला है ।' प्रयोवचः स्फूर्जथुकल्पमेवमाकर्ण्य कान्ता निजगाद कान्तम् । त्वयैव गेहं मम तत्त्वदीयं छायेव मुञ्चामि न सन्निधानम् ॥ , अपने पति के वज्रध्वनि के सदृश कठोर वचनों को सुनकर कान्ता ने कहा – 'नाथ ! तुम ही मेरे घर हो, इसलिए मैं तुम्हारे साथ छाया की भांति रहूंगी, तुम्हारा सान्निध्य नहीं छोडूंगी। १. विहायस् - आकाश ( विहाय श्राकाशमनन्तपुष्करे - अभि० २|७७ ) २. स्फूर्जथु: - वज्र की ध्वनि ( स्फूर्जथुर्ध्वनि: - श्रभि० २२६५ ) -
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy