________________
अष्टमः सर्गः
१६३
रात्री में पति द्वारा किए गए अनुनय और विनय से भी सुन्दरियों ने अपना अहं (हठ) नहीं छोड़ा। उस अहं को सेना के कोलाहल के साथ उछलने वाले मुर्गे के शब्दों ने तोड़ डाला।
६८. प्रातः प्रयाणाभिमुखोऽस्मि कान्ते ! , सङ्गः कुतो नौ पुनरप्यमदृक् ।
न नेतुरुक्त्येति जहौ हठं या , सा कुक्कुटोक्त्या' प्रियमालिलिङ्ग ॥
पति ने अपनी प्रिया से कहा-'कान्ते ! मैं प्रातःकाल ही यहाँ से प्रयाण करने वाला हूं। हमारा ऐसा संगम पुनः कहां होगा' ? पति के द्वारा इतना कहने पर भी पत्नी ने हठ नहीं छोड़ा, किन्तु मुर्गे की बाँग सुन उसने हठ छोड़ दिया और वह पति से जा लिपटी।
६९. जगत्त्रये कस्तुमुलोयमद्य , येनाहमुज्जागरितोप्यकाण्डे । ___ तं द्रष्टुमर्कः प्रथमाद्रिचूलामध्यारुरोहेव रुषेति ताम्रः ॥
'आज तीनों लोक में यह क्या कोलाहल हो रहा है जिससे कि मुझे असमय में ही जागना पड़ा'—यह सोचकर सूर्य क्रोध से लाल होता हुआ उस कोलाहल को देखने के लिए उदयाचल पर जाकर उदित हुआ।
७०. . रथाङ्गनाम्नोविरहप्रदानाद् , दुष्टेयमत्यन्तमहं तु मित्रः ।
इतीर्ण्ययेवाचकृषं तमिस्रवासो रजन्या ग्रुपतिः करेण ॥
सूर्य ने अपनी किरणों से रात्री के अंधकार रूपी वस्त्र को, इस ईर्ष्या से खींच लिया कि इस रात्री.ने चक्रवाक-युगल को विरह दिया है, इसलिए यह अत्यन्त दुष्टा है, शत्रु है और मैं उस विरह को समाप्त करता हूँ, इसलिए मैं इसका मित्र हूँ।
७१. सरोजिनीभिः किल वासरान्ते , प्रसह्य याभ्यासि दशा प्रगे सा।
कुमुद्वतीभिश्च न वैपरीत्यं , जायेत कि राज्यविपर्यये हि ?
दिन के अवसान की वेला में कमलिनियों ने जिस दशा (व्यवस्था) को स्वीकार किया था, उसी दशा को कुमुदिनियों (रात्रि में खिलनेवाली कमलिनियों) ने प्रातःकाल स्वीकार किया। राज्य की व्यवस्था बदलने पर क्या दूसरी सारी चीजें नहीं बदल जातीं?
1. पाठान्तरेण—कुत्कुटोक्त्या। २. अकाण्डे-असमये। ३. दिन में प्रफुल्लित होने वाले कमल रात्रि में मुरझा जाते हैं और रात्रि में प्रफुल्लित होने वाले
कमल दिन में मुरझा जाते हैं । यही भाव इस श्लोक का प्रतिपाद्य है।