SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ ७२. ७३. रात्री का अन्त होने पर अत्यन्त सुगन्धित और तालाब रूपी वासगृह वाले वन में प्रभात में विकसित होने वाला कमल समूह खिल उठा। उस समय वहाँ का पवन उन खिली हुई कमलिनियों के मुंह का कामुक व्यक्ति की भांति, बार-बार चुम्बन करता हुआ. आनन्दित हो उठा । ७४. निशाविरामो 'न्मिषदब्ज राजीमुखानि संचुम्ब्य मुहुर्ननन्द । कासारवासौकसि सौरभाये, कामीव तस्मिश्च वने नभस्वान् ॥ सूर्य के उदित होने पर उस प्रभात की वेला में चक्रवर्ती भरत ने वहां से प्रयाण किया । कई राजे अपनी पत्नियों को साथ लेकर और कई राजे उन्हें वहीं छोड़कर भरत के साथसाथ चल पड़े । ७५. इत्युद्यते भानुमति प्रभाते विहाय केचित् सुदृशश्च केचित् । , समं समादाय ततः प्रचेलुर्महीभुजा भारतराजराजः ॥ भरतबाहुबलि महाकाव्यम् भरतनृपतिसैन्याम्भोनिधिः संचचार, स्फुटतुरगतरङ्गस्तुङ्गमातङ्गनः । रथवहनविदो प्रश्रीभरश्चैतदग्र े, सकलजगति पीठाप्लावनोद्दामशक्तिः ॥ अव भरत चक्रवर्ती का सेना रूपी समुद्र उसके आगे-आगे चल पड़ा । उसमें घोड़े रूपी कल्लोल उठ रहे थे और प्रोन्नत हाथी रूपी मंगरमच्छ भरे पड़े थे । उस समुद्र के ऊपर रथ रूपी जहाज शोभित हो रहे थे । वह सैन्य-समुद्र समस्त भूमण्डल को आप्लावित करने में उत्कट पराक्रम वाला था । शय्यां विहाय कुसुमास्तरणोपपन्ना, प्रातस्तनं पुनरशेषविधि विधाय । पुण्योदयार्चनभरं भरताधिराजो, नागाधिपं रजतकान्तमथारुरोह ॥ प्रातःकाल के समय महाराज भरत फूलों के बिछौने वाली शय्या का परित्याग कर पुण्योदय की अर्चना से भरी-पूरी प्रातःकालीन सारी विधियों को सम्पन्न कर, चांदी की चमक वाले श्वेत हाथी पर आरूढ हुए । - इति सैन्यप्रस्थानवर्णनो नाम अष्टमः सर्गः १. निशाविराम: - प्रभात ।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy