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________________ अष्टमः सर्गः ५८. विचित्रवर्णाः स्फुटमेकवर्णा , बभूवुरश्वा उडुपोदयाद्' द्राक् । तेषामलब्ध्वा चमरांश्च केचिन् , निगालबद्धा' विदधुशाखाः ॥ चन्द्रोदय होते ही शीघ्र ही अनेक वर्ण वाले घोड़े एक वर्ण वाले (सफेद) हो गए। इसलिए कई अश्वारोहियों को उनकी पूंछे नहीं मिली तब उन्होंने वृक्षों की शाखाओं को ही (पूंछ मानकर) सांकल से बांध दिया। ५६. केचिद् रथस्योपरितोऽधुनैवं , चन्द्रोदयोऽयं भवताद् विचार्य । कृत्वा च चन्द्रोदयशून्यमेव , प्राचीचलन् स्यन्दनमऽत्यऽमन्दाः ॥ 'रथों के ऊपर यह चन्द्रोदय अभी होने ही वाला है'-ऐसा सोचकर बहुत उद्यमी कई रथिकों ने अपने-अपने रथों के चारों ओर डाले हुए 'बँदोवों' को हटा वहाँ से प्रयाण कर दिया। ६०. विचित्रवेषा विशदेकवेषाः , पदातिधुर्याः पुरतः प्रसस्त्र । शिरोगविन्यस्तमयूरपिच्छाः , कि हंसपक्षाः शिरसीति ताः ॥ सेनानायक विभिन्न प्रकार के वेश पहने हुए आगे-आगे चल रहे थे। किन्तु उस समय वे सब एक सफेद वेश पहने हुए से लग रहे थे। उनके मस्तिष्क के अग्र-भाग में मयूरपिच्छ लगे हुए थे। उन्हें देख ऐसी तकणा हो रही थी कि क्या उनके शिर पर हंसों के पंख लगे हुए हैं ? ६१. एवं तदानीं चतुरङ्गसैन्यकोलाहलः प्रादुरभूत स कोपि । किन्नर्य उन्निद्रदृशो बभूवुर्येनाग्रतो मन्दरकन्दरस्थाः ॥ इस प्रकार उस समय चतुरंग सेना के प्रयाण से ऐसा कोई कोलाहल होने लगा जिससे मन्दरगिरी की सुदूर कन्दराओं में रहने वाली किन्नरियाँ जाग उठीं। ६२. इदं गृहाण स्वमिदं विमुञ्च , त्वं तिष्ठ गच्छ त्वमुपेहि सद्यः । त्वं सज्जयेत्यादि वचोभिरेभिस्तस्य ध्वजिन्यास्तुमुलः ससार । १. उडुपः-चन्द्रमा। २. चमर:-पूंछ (चामरं चमरोपि च इति पुंस्त्वम्) ३. पंजिकाकार ने निगाल का अर्थ- 'घोड़े का गला' किया है। आप्टे ने इसका दूसरा अर्थ 'सांकल (A chain) माना है । यहां यही अर्थ उपयुक्त लगता है। ४. चन्द्रोदय:-चंदोवा (वितानं कदकोऽपि च । चन्द्रोदये-अभि० ३।३४५) ५. तुमुल:-कोलाहल (तुमुलो व्याकुलोरवः–अभि० ३।४६३)
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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