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- भरतबाहुबलिमहाकाव्यम्
ने पृथ्वी और आकाश को सफेद बना डाला। उस समय समूचे लोक में श्वेत वर्ण के अतिरिक्त कोई दूसरा वर्ण दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था।
५४. एतद्वयस्याः कुमुदिन्य एताः , पश्यन्तु सुप्ताः पुनरम्बुजिन्यः ।
विधुर्विचायति निशाङ्गनायास्तमिस्रवासः सहसा चकर्ष ॥
'रात्री की सखियाँ ये कुमुदिनियां देखें कि कमलिनियां सोई हुई हैं'-ऐसा सोचकर चन्द्रमा ने अपनी पत्नी रात्री का अंधकार रूपी कपड़ा सहसा खींच लिया।
५५.. एवं प्रविस्तारवति द्विजेन्द्रोदयेऽवदातीकृतविश्वविश्वे ।
भृत्याः प्रतिष्ठासु बलं प्रगे' तत् , स्वकृत्यमादध्म इति प्रबुद्धाः ॥.
इस प्रकार चन्द्रमा के उदय का विस्तार होने पर उसकी चांदनी से सारा संसार सफेद हो गया। 'प्रातःकाल होते ही सेना आगे बढ़ेगी। हम अपना-अपना कार्य पूरा करेंऐसा सोचकर सेवक जागृत हो गए। .
५६. श्यामार्जनाभद्विपयोविवादो , निषादिनो र्जागतयोर्बभूव ।
समानतुङ्गत्वरदप्रमाणवर्णैक्यदत्तभ्रमयोस्तदानीम् ॥
एक हाथी काला था और एक सफेद । दोनों की ऊंचाई और दांत बराबर थे। उनके महावत जागृत थे। चन्द्रमा की चाँदनी ने दोनों हाथियों को सफेद बना दिया। उस भ्रम के कारण दोनों महावतों में विवाद हो गया।
५७. आधोरणा अप्युदिते शशाङ्क , क्षुभ्यत्सुधाम्भोधितरङ्गगौरे ।
आदाय मालूर फलानि नागकर्णषु शंखभ्रमतो बबन्धुः ॥
क्षब्ध हए अमृत समुद्र के तरंगों की भांति गौर चन्द्रमा के उदित होने पर हस्तिपालों ने शंख के भ्रम से बिल्व फलों को हाथियों के कानों में बांध दिया ।
१. प्रतिष्ठासु-चिचलिषु । २. प्रगे-प्रातःकाल (प्रगे प्रातरहर्मुखे-अभि० ६।१६६) ३. निषादिन्–महावत (महामात्रनिषादिन:-अभि० ३।४२६) . ४. आधोरणा:-महावत (आधोरणा हस्तिपका:-अभि० ३।४२६) ५. मालूर:-बिल्व (मालूरः श्रीफलो बिल्व:-अभि० ४।२०१)