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अष्टमः सर्गः ।
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४६. कि कन्दुकः श्रीतनुजस्य किं वा , रतेविलासालयकुम्भ एषः ? ___किमुत्सवच्छत्रमिति व्यकि , शरच्छशाङ्को युवभिस्तदानीम् ?
-युग्मम् ।
उस समय तरुणों ने शरद् ऋतु के चन्द्रमा को देखकर यह वितर्कणा की कि क्या यह शृगार-रस के दही से निकला हुआ नवनीत पिंड है या शिव के शिर पर शोभित होने वाला मुक्तामणि है या गगन रूपी लक्ष्मी का चन्दन से लिप्त स्तन है या आनन्द का क्रीड़ा-सरोवर है या लक्ष्मी के पुत्र कामदेव का कंदुक है या कामदेव की पत्नी रति के विलासगृह का कुंभ है या उत्सव का छत्र है ?
५०. विलोक्य दीपान्नुपसौधसंस्थान् , बलद्विषाऽकारि किमेष दीप: ?
स्वचन्द्रशालाशिखराग्रदेशेऽभ्युद्यन् विधुः कश्चिदकिं चैवम् ॥
कुछ तरुणों ने उगते हुए चन्द्रमा को देखकर यह सोचा कि क्या राजमहलों में स्थित रत्न-दीपों को देखकर इन्द्र ने अपनी चन्द्रशाला के शिखर पर यह दीप जलाया है ?
५१. सितद्युतौ दूरमुदित्वरेऽपि , विकासलक्ष्याज्जहसे कुमुद्भिः ।
रागी विदूरे स्थितवानंदूरे , भवेन्न किं चित्तविनोदकारी ?
चन्द्रमा के बहुत दूर उदित होने पर भी विकचित होने के बहाने से चन्द्रविकासी कमल प्रफुल्लित हो गए । क्या रागवान् व्यक्ति, चाहे दूर हो या समीप, मन में विनोद पैदा नहीं करता ?. .
५२.. इन्दोः करस्पर्शनतः प्रमाद' , तत्याज वेगेन कुमुद्वती च ।
का वामनेत्रा न जहाति निद्रामुपस्थिते भर्तरि संनिकृष्टम् ॥ चन्द्रमा की किरणों का स्पर्श होते ही कुमुदिनी ने प्रमाद (निद्रा) का त्याग शीघ्र ही कर दिया। कौन ऐसी स्त्री होगी जो अपने पति के निकट आने पर निद्रा का त्याग नहीं करती? ५३. कराः सितांशोः परितः स्फुरन्तः , सुधाम्बुराशेरिव वीचिवाराः ।
तथा सितीचक्रुरिलान्तरिक्षे , यथा न वर्णान्तरदृष्टिरत्र ।
सुधा-समुद्र की तरंग-समूह की भांति चारों ओर स्फुरित होती हुईं चन्द्रमा की किरणों
१.श्रीतनुजः-कामदेव (प्रद्युम्नः श्रीनन्दनश्च–अभि० २।१४२) २. प्रमाद:-निद्रा।