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अष्टमः सर्गः
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उसने यह बात पति से कही । जब वह वहाँ से जाने लगी तब उस युवक पति ने उसे किसी प्रकार रोक कर रखा।
२६. उपस्थितेन प्रथमं प्रियेण , प्रियाक्रुधे किञ्चन कौतुकार्थम् ।
__ लाक्षारसेनालिखितं रसायां , काचित् पदं वीक्ष्य चुकोप पत्ये ॥
पहले आए हुए पति ने कुतूहलवश अपनी प्रिया को कुपित करने के लिए भूमि पर लाक्षारस से चरण आलेखित कर दिए। उन्हें देखकर वह प्रिया पति पर कुपित हो गई।
३०. पटीमुपादाय मुखे च कान्ता , छलेन निद्रामधिगम्यमाना।
नोन्निद्रनेत्रयमथो विधेया , वदन्निति द्राग् जगृहे कयाचित् ॥
एक सुन्दरी मुंह पर कपड़ा ओढ़कर नींद लेने का बहाना करती हुई कपट रूप से सो गई। पति ने आकर देखा और कहां-'इसे जगाना ठीक नहीं है।' इतने में ही उठकर उसने शीघ्रता से पति को पकड़ लिया।
३१. पराङ्मुखी काचन कान्तरूपं , निजामुलीकुञ्चिकया लिखन्ती। ___निमील्य नेत्रे सहसा कराभ्यामचुम्बि पृष्ठोपगतेन नेत्रा ॥
एक सुन्दरी पीठ फेरकर अपनी अंगुलियों की तूलिका से अपने पति का रूप चित्रित कर रही थी। इतने में ही उसका पति आ पहुंचा। पीठ की ओर से आए हुए पति ने सहसा उसकी आँखें मूंदकर उसका चुम्बन ले लिया।
३२. काञ्च्याभिरामं जवनं विधाय , पादौ पुनर्न पुररम्यनादौ ।
स्मरं सहायञ्च सकङ्कपत्रं' , काचिन्निशीथे ऽभिससार कान्तम् ॥
कोई अभिसारिका अपनी कमर को करधनी से सुसज्जित कर, चरणों में मनोज्ञ नाद करने वाले नूपुर पहन, बाणयुक्त कामदेव को सहायक बनाकर अर्द्धरात्रि की वेला में अपने पति के पास गई।
३३. निःश्वासहार्यांशुकवीक्ष्यमाणवपुः समग्राङ्गपिनद्धभूषा।
हृदीशितुर्वासगृहं समेता , काचिद् दृशोरुत्सवमाततान ॥
एक सुन्दरी निःश्वास से उड़ने वाले कपड़ों को पहने हुए थी, इसलिए उसका शरीर
१. कंकपत्रं-बाण (अभि० ३।४४२) २. निशीथ:-प्राधी रात (निशाथस्त्वद्ध'रात्रो महानिशा-अभि० २।५६)