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________________ अष्टमः सर्गः १९. आरामलक्ष्म्येव विनिर्मिताभिरस्नेहदीपावलिभिनिशान्तर्। प्रादुर्भवद्ध्वान्तभरापनुन्य , पदे पदेप्यौषधिभिदिदीपे ॥ रात के मध्य में प्रगट होते हुए अन्धकार को दूर करने के लिए मानो बगीचों की सम्पदा से विनिर्मित, बिना तेल वाले दीपों की श्रेणी की भांति विभिन्न प्रकार की औषधियां (वनस्पतियाँ) पग-पग पर दीप्त हो रही थीं। २०. प्रकल्पिताकल्पविधिः क्षितीशः , सहावरोधेन ततो जगाम । रत्नप्रदीपद्युतिदृश्यमानमार्गः पटागारवरं प्रदोधे । समय के उपयुक्त वेश पहन कर राजा अपने अन्तःपुर के साथ सायंकाल के समय पटगृह में गया। उस समय रत्न-प्रदीपों की किरणें उसके मार्ग को आलोकित कर रही थीं। २१. शुद्धान्तवेषस्य बभूव शोभा , या वासरे सा समये रजन्याः । ऊहेऽधिकत्वं स्मरसाहचर्यात् , मणिप्रदीपाभ्यधिकप्रकाशात् ॥ अन्तःपुर की सुन्दरियों के वस्त्रों की जो शोभा दिन में थी, उससे अधिक शोभा रात्री के समय होने लगी। इसके दो कारण थे-एक तो यह कि उस समय कामदेव का साहचर्य प्राप्त था और दूसरा मणियों के प्रदीपों का अत्यधिक प्रकाश विद्यमान था। २२. विलासिनीभिर्ययिरे युवानो , यथालिनीभिः कुमुदप्रदेशाः । __ रुचां कलापैः पुनरुद्दिदीपे , निकेतरत्न'प्रचयस्य सौधे ॥ जिस प्रकार भ्रमरियाँ श्वेत कमल के प्रदेशों की ओर जाती हैं, उसी प्रकार स्त्रियां युवक पतियों की ओर गईं । उस समय प्रासाद में दीपकों के समूहों से उठने वाली किरणें प्रदीप्त हो उठीं। २३. काचिद् विवृत विविधैः प्रसूतैः , स्वाभ्यां कराभ्यां विरचय्य शय्याम् । पुष्पेषु'बागाग्रहताङ्गयष्टि: , स्वकान्तमार्ग मुहुरीक्षतेस्म ॥ कामदेव के बाणान से आहत शरीर वाली कोई सुन्दरी अपने हाथों से विविध प्रकार के फूलों से शय्या तैयार कर अपने पति के आने के मार्ग को बार-बार निहार रही थी। १. निशान्तर्-नक्तमध्ये । २. निकेतरत्नं-दीपक (स्नेहप्रियो गृहमणि:-अभि० ३।३५१) ३. पुष्पेषु:-कामदेव। .
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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