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________________ १७ . इसका हेतु समझकर वह बाहुवली के पास अपना दूत भेजता है । काव्य का आरंम इसी प्रसंग से होता है । दूत बाहुबली को भरत का संदेश देता है और बाहुबली का सन्देश भरत के पास लाता है । दोनों भाई रणभूमी में मिलते हैं और वे द्वादशवर्षीय युद्ध लड़ते हैं । युद्ध की समाप्ति पर बाहुबली भगवान् ऋषभ के पथ का अनुगमन कर मुनि बन जाते हैं और भरत चक्रवर्ती शासक । अन्त में भरत भी अनासक्ति का परिपाक होने पर आदर्शगृह में बैठे-बैठे केवली बन जाते हैं। काव्य समाप्त हो जाता है। इस संक्षिप्त कथावस्तु को कवि ने खूब सझाया और संवारा है। वर्णन की लम्बाई से काव्य को प्रलंब किया है, किन्तु इस लम्बाई में सरसता का भंग नहीं हुआ है। यह कवि की अपनी विशेषता है । दूत की वाग्मिता और नीतिमत्ता का प्रदर्शन कवि ने विस्तार से किया है और कहीं-कहीं वह बहुत ही मार्मिक बन पड़ा है । भरत का बाहुबली के प्रति प्रगाढ़ प्रेम था। दूत ने देखा जब तक इस प्रेम की प्रगाढता में छिद्र नहीं होगा तब तक राज्य-कर्तव्य का प्रकाश प्रगट नहीं होगा। दूत ने बड़े विलक्षण चातुर्य के साथ उसमें छेद डालने का प्रयत्न किया और वह अपने मनोरथ में सफल भी हो गया। इस प्रसंग के कुछ अंश प्रस्तुत हैं नपतेः स्वजनाश्च बान्धवा, बहवो नोचित एषु संस्तवः। अवमन्वत एव संस्तुता, यदधीशं जरिणं यथाऽजराः (४१५५) प्रणयस्य वशंवदो नृपः, स्वजनं दुर्नयिन विवर्धयेत् । निवसन्नपि विग्रहान्तरे, विकृतो व्याधिरलं गुणाय किम् ? (४५७) नृपतिर्न सखेति वाक्यतः, सचिवाद्या अपि बिभ्यति ध्र वम् । पृथुलज्मलदुग्रतेजसो, दवधूमध्वजतो गजा इव ॥ (४।५८) छन्द .. प्रस्तुत काव्य में वर्ण्य-विषय के अनुसार कवि ने छन्दों का प्रयोग किया है। इसके अठारह सर्ग और पन्द्रह सौ पैंतीस श्लोक हैं। इनके मुख्य छन्दों का क्रम इस प्रकार है----- ___ श्लोक छन्द EC * १०७ वंशस्थविल उपजाति अनुष्टुप् वियोगिनी द्रुतविलंबित स्वागता ७६ ८१ . ७५
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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