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श्लोक
छन्द
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८३
रथोद्धता
७५
७७
७५
उपजाति उपजाति उपजाति अनुष्टुप् उपजाति वंशस्थविल . उपजाति अनुष्टुप् स्वागता प्रहर्षिणी उपजाति
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१३१
३
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वर्ण्य-विषय के अनुसार सर्ग के अन्तर्गत मुख्य छन्दों के अतिरिक्त अन्य छन्दों का भी प्रयोग किया गया है। जैसे-रणभूमि में जब देवता बाहुबली को सम्बोधित करते हैं उस समय 'त्रोटक छन्द' का प्रयोग कर कवि ने संबोधन को लयबद्धता प्रदान की है
नप ! संहर संहर कोपमिमं, तव येन पथा चरितश्च पिता। सर तां सरणि हि पितुः पदवीं; न जहत्यनधास्तनयाः क्वचन ॥ (१७१७१) धरिणी हरिणीनयना नयते, वशतां यदि भूप ! भवन्तमलम् । विधुरो विधिरेष तदा भविता, गुरुमाननरूप इहाक्षयतः॥ (१७७२) मुनिरेष बभूव महाव्रत मृत्, समरं परिहाय समं च रुषा। सुहृदोऽसुहृदः सदृशान् गणयन्, सदयं हृदयं विरचय्य चिरम् ॥ (१७७६)
इसी प्रकार सातवें सर्ग के ७६ से ८२ तक के श्लोक वसंततिलका छन्द में, आठवें सर्ग का ७४ वां श्लोक मालिनी छन्द में, तेरहवें सर्ग के ५६ से ६३ श्लोक शिखरिणी छन्द में और ६४ से ६७ श्लोक शार्द लविक्रीडित छन्द में तथा अठारहवें सर्ग के ७६, ८०, ८१ श्लोक त्रोटक छन्द में तथा ८२ वां श्लोक शार्दूलविक्रीडित छन्द में है।