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सप्तमः सर्ग: अब भरत अपने अन्तःपुर की सुन्दरियों के साथ जलक्रीडा करने के लिए राजहंस की तरह क्रीडा-सरोवर की ओर चल पड़ा। वह सरोवर विकसित कमलों की शोभा से युक्त था । वह भरत से स्पर्धा कर रहा था-उसकी बराबरी कर रहा था।
वह सरोवर कमलिनी-निचय से संचित उत्सव वाला था और भरत पद्मिनी स्त्रियों से युक्त था। उस सरोवर के तटों पर राजहंस रहते थे और भरत की सेवा में राजहंसश्रेष्ठ राजे रहते थे। वह सरोवर वेगपूर्वक ऊर्मि रूपी हाथों से भरत से मिलने को उत्सुक हो रहा था।
७१. आगतोद्गतसरोजिनीचयर्मेखलारणितभङ्गकूजितः।
चक्रहंसकलनपुरारवैः , सद्रसान्तरगतैः सरो बभौ ॥
भंग-कूजन रूपी करधनी के शब्दों तथा चक्रवाक और हंसों की कलध्वनि रूपी नुपूरों के शब्दों से युक्त और स्वच्छ पानी के मध्य में विद्यमान आपात उत्पन्न कमलिनियों के समूह से वह सरोवर शोभित हो रहा था ।
७२. पुण्डरीकनय विकासिभिर्लोकमानमिव केलिपल्वलम् ।
चक्रसारसविहङ्गमस्वनैराह्वयन्तमिव स व्यलोकत ॥
विकसित कमल रूपी नयनों से देखे जाते हुए तथा चक्रवाल, सारस आदि पक्षियों के शब्दों द्वारा बुलाए जाते हुए भरत ने उस क्रीडा-सरोवर को देखा।
७३. योषितां प्रतिकृतिर्जलाशये , पश्यतामिति वितर्कमादधे । - स्वं स्वरूपमिह सिन्धुसोदरे , कि श्रियेव बहुधा व्यभज्यत ।
जलाशय में देखती हुई स्त्रियों के प्रतिबिम्ब ने यह वितर्क किया-क्या इस सिन्धु के सहोदर जलाशय में लक्ष्मी ने अपने आपको अनेक रूपों में विभक्त कर डाला है ?
७४. एतदग्रत इमा जलात्मजाः, कि नलिन्य इति पङ्किला ह्रिया।
हीयतेस्म नलिनीगणस्तदा, शुद्धपक्षयुगलैः सितच्छदैः ॥
भरत की इन सुन्दरियों के समक्ष जड (जल) से उत्पन्न होने के कारण लज्जा से पंकिल बनी हुई, इन नलिनियों का अस्तित्व ही क्या है इस वितर्क से उन सफेद पाँखों वाले हंसों ने उस नलिनी समूह को छोड़ दिया।