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भरत बाहुबलि महाकाव्यम्
लग रहा था मानो कि शिव द्वारा धनुष को तोड़ डालने पर कामदेव अपने स्कंध देश पर तलवार धारण कर रहा हो ।
४४.
उच्चिताभिनवचम्पकस्रजा, पुष्परेणुपरिपाण्डुरा तनुः । शारदोदकमुचामिवावलिविद्युतैव सुदृशां व्यरोचत ।।
तत्काल चुने हुए अभिनंव चम्पक के फूलों की माला से विकीर्ण पुष्परेणु से धूसरित स्त्रियों का शरीर शरद् ऋतु के मेघों में चमकने वाली बिजली की तरह दीप्त हो रहा था ।
४५. स्वेदलुप्ततिलके प्रियानने पुष्पधूलिपरिधूसरत्विषि ।
स व्यधत्त वदनानिलं मुहुर्जीवयन्निव मनीषितां घृतिम् ॥
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प्रिया के प्रानन का तिलक पसीने से घुल गया था। उसकी कांति पुष्पधूलि से धूसरित हो गई थी । भरत हृदय की इच्छित तुष्टि को प्राणवान् करता हुआ अपनी वल्लभा के मुँह पर अपने मुँह से हवा झलने लगा, फूंक देने लगा ।
४६. इत्यमूं कथयतिस्म तत्सखी, तत्त्वदीयसुभगत्वमेव यत् । रम्भाऽपि कमनीयमीदृशी, वल्लभः किमनया वशीकृतः ?
उसकी सखी उसको कहने लगी- 'यह तेरा ही सौभाग्य है कि इन्द्राणी भी उसकी अभिलाषा करती है । उसके मन में भी यह वितर्क उत्पन्न हुआ है कि इस कान्ता ने ऐसे वल्लभ को कैसे वश में कर लिया ?'
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४७. गोत्रविस्खलितमेवमभ्यधात् कापि तं प्रणय एकपक्षतः । न प्रयाति हृदयं तयाकुलं मानसे यदति तन्मुखे भवेत् ॥ ४८. इत्युदीर्यं पतदश्रुलोचना, निर्जगाम सहसा तदन्तिकात् ।
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संप्रवेष्टुमिव साधरान्तरं न्यङ्मुखी क्वचिदिता लतालयम् ॥
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—युग्मम् ।
पति ने अपनी कान्ता को गलत नाम से संबोधित किया, तब वह इस प्रकार बोली'मेरा प्र म एकपक्षीय है । आपका उस स्त्री से आकुल मन उस प्रेम तक नही पहुंच पा रहा है । जो मन में होता है वही मुंह पर छलक जाता है ।'
इस प्रकार कहकर वह आंखों से आंसू बहाती हुई शीघ्र ही उसके पास से चली गई 1 १. कमनीयं – अभिलषनीयम् ।