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________________ सप्तमः सर्गः ६. षट्पदाञ्जनभरं लतालयः', सविधाय सुमलोचनेषु च । वल्लभा इव मुदं ददुस्तरां , तस्य संविहरतो वनान्तरे ॥ लताओं ने अपने सुमन रूपी लोचनों में भौरों रूपी अंजन आंजकर, वन के बीच विचरण करने वाले महाराज भरत को, प्रियाओं की भांति आनन्दित किया। १०. मत्तभृङ्गरुतशिजिनीरवं , पुष्पचापमधिरोप्य मन्मयम् । संतुतोष स निजानुहारिणं , वीक्ष्य काननगतं जयावहम् ॥ महाराज भरत ने अपने समान रूप-रंग वाले विजयी कामदेव को कानन में आए हुए देखकर मत्त भृङ्ग के गुजारव रूपी प्रत्यंचा की टंकार वाले पुष्प-धनुष्य से उसे संतुष्ट किया। ११. उन्मिषत्कुसुमकुड्मलस्तनीश्चंपकप्रसवगौररोचिषः। कोकिलास्वरभृतः सितच्छदध्वाननपुर मनोरमक्रमाः॥ १२. कुन्दसुन्दरदतीः परिस्फुरच्चञ्चरीकनयनाः सुमस्मिताः। पल्लवाधरवतीर्वनावनी वणिनी रिव विलोक्य सोऽतुषत् ॥ -युग्मम्। भरत घनस्थलियों को देखकर सन्तुष्ट हुआ। वे सुन्दर स्त्रियों की भांति प्रिय लग रही थीं। वे विकसित पुष्पगुच्छ रूपी स्तनों वाली, चम्पक के फूलों सी गौर कांति वाली, कोकिलाओं के स्वर.से भरी पूरी, हंसों के शब्द रूपी नूपुरों से मनोरम चरणवाली, कुन्द फूलों सी सुन्दर दाँतों वाली, उड़ते हुए भौंरों सी आंखों वाली, फूलों की तरह हंसने वाली और पल्लव रूपी अधरों वाली थीं। १३. सर्वतोस्य फलिनीलताऽसिते, व्योमकीर्णमिह कौमुदं रजः । पक्षिपक्षपवनः प्रपञ्चितं , कौमुदीभ्रममतीतनत्तराम् ॥ सर्वत्र व्याप्त प्रियंगुलता से श्यामल वन में उड़ते हुए पक्षियों के पक्ष से उठने वाली हवा १. लतालय:--लतानां आलयः-पंक्तयः ।। २. कुन्दसुन्दरदती:-कुन्दवत् सुन्दरा दन्ता यासां तास्ताः । ३. सुमस्मिता:-सुमाणि-पुष्पाणि तद्वत् स्मितं-हसितं यासां, तास्ताः । ४. वनावनि:-काननवसुधा । ५. वणिनी स्त्री (वर्णिनी महिलाऽबला—अभि० ३१६८) फलिनीलता-प्रियंगु की लता (प्रियंगु फलिनी श्यामा-अभि० ४।२१५) कौमदं रजः–कुवलयोत्थ: परागः । पाठान्तरम्-पक्षिपक्षपवनप्रपञ्चितम् ।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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