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________________ कथावस्तु महाराज भरत अपने अन्तःपुर के साथ अयोध्या के परिसर में व्याप्त उपवनों में गए और अपनी रमणियों के साथ विविध प्रकार की क्रीड़ा करने लगे । महाराज भरत चन्द्रमा की भांति शोभित हो रहे थे। जैसे चन्द्रमा के पीछे-पीछे किरणें चलती हैं, वैसे ही महाराज भरत के पीछे-पीछे सुन्दरियां चल रही थीं। उनके हाथों में पंचवर्णी तालवृन्त के पंखे थे। एक सुन्दरी भरत के मस्तक पर छत्र ताने चल रही थी। भरत के मन में जलक्रीड़ा करने की इच्छा उत्पन्न हुई। वे अपनी रमणियों के साथ क्रीड़ा-सरोवर की ओर बढ़े। वे रमणीय सरोवर के पास आए। उन्होंने अंगनाओं के साथ उसमें अवगाहन किया । जलक्रीड़ा में रत सुन्दरियां भरत को छका रही थीं। उनके केशपाश शिथिल हो चुके थे। जूड़े में लगे फूल पानी पर तैरने लगे। उस समय वह सरोवर प्राभातिक आकाश की भांति फूलों से टिमटिमा रहा था। जलक्रीड़ा से निवृत्त होकर सुन्दरियां तट पर आईं। उस समय सूक्ष्म वस्त्रों के भीतर से उनके शरीर की कान्ति स्पष्टरूप से प्रकट हो रही थी। महाराज भरत भी भीगे वस्त्रों सहित तट पर प्रा.गए।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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