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षष्ठः सर्गः
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महाराज भरत को देखने के लिए नगर की वधूएँ अत्यन्त त्वरा से एकत्रित हुई। उनके नयन और मुख-क्रमल की सम्पदा विकसित पद्मदल से युक्त मानसरोवर की शोभा को प्राप्त किए हुए थी।
१६. लीलयैव करिणीशकराता , सैन्यवीक्षणपरात्र गवाक्षात् ।
काचिदूर्ध्वपदधःकृतवक्त्रा , हास्यमापयदनन्तचराणाम् ॥
एक सुन्दरी झरोखे से सेना को देखने में तत्पर थी। एक हाथी ने उस को क्रीडावश अपनी सूंड में पकड़ लिया। उस समय उस स्त्री के पैर ऊपर और मुंह नीचे हो गया। इसे देख विद्याधरों का हास्य फूट पड़ा।
१७. कामिनी बलविलोकनदायादुद्धता करिवरेण करेण ।
वल्लिवत्स्तनफलाकलिताङ्गी , कामिनां मुदमदत्त तदानीम् ॥
सेना को देखने में तत्पर एक सुन्दरी को हाथी ने अपनी सूंड में उठा लिया । सैन्यसंचार के उस समय में बेल की तरह स्तन रूपी फलों से युक्त उस कामिनी ने कामी पुरुषों को प्रमुदित किया।
१८. स्मेरवक्त्रकमलोपरिलोलल्लोचनभ्रमरविभ्रमंवामा।
पद्मिनीव गजराजकराग्रे , राजतेस्म चकितेक्षणदृष्टा॥
विकसित मुख-कमल पर मंडराने वाले लोचन रूपी भ्रमर के विभ्रम से मनोज्ञ, आश्चर्य की आंखों से. देखी जाने वाली एक सुंदरी गजराज की सूंड में कमलिनी की भांति शोभित हो रही थी।
१९. कुम्भिकुम्भकुचयोरुपमानं , लेभिरे मिलितयोमिथ एव ।
केचनोरंकरयोरपि साक्षात् , तादृशां ह्यवसरे किमनाप्यम् ?
उस समय कई युवकों ने परस्पर मिले हुए हाथी के कुम्भस्थल और नारी के स्तनों तथा हाथी की सूंड और नारी की साथल में साक्षात् समानता देखी। क्योंकि भरत जैसे महान् व्यक्तियों के आने के अवसर पर अलभ्य क्या रह जाता है ?
१. स्मेर....."-स्मेरं-विकस्वरं, वक्त्रं-आननं तदेव कमलं, तस्योपरि लालंतश्चलंतो लोचन__ भ्रमरास्तेषां विभ्रमः-शोभातिशयः, तेन वामा-मनोज्ञा। २. चकिते......-चकितेक्षणं-भीतलोचनं यथा स्यात् तथा दृष्टा-विलोकिता।