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भरत बाहुबलि महाकाव्यम्
विद्याधर संकुल राजमार्ग को छोड़कर आकाशमार्ग में चले गए। देवताओं तथा विद्याधरों के विमान - विहार के कारण विद्याधरों ने आकाश मार्ग को बहुत ही संकीर्ण अनुभव किया ।
१२.
पृथ्वी पर चक्रवर्ती की सेना चल रही है और प्रकाश में विद्याधर अपने विमानों में जा रहे हैं । बीच में रजःकण छा रहे हैं। सेना को देखने के उत्सुक विद्याधरों ने 'पृथ्वी पर चलनेवाली सेना को देखने में हमारे सामने कोई विघ्न उपस्थित न हो' – इस भावना से वारुणास्त्र के द्वारा जल बरसा कर मध्यवर्ती रजःकणों को निरस्त कर दिया ।
१३.
अन्तरोद्यत' रजोपि निरासे, वारुणप्रहरणाम्बुविसृष्ट्या । व्योम र्बल विलोकनशौण्डे:', पश्यतां न न इहास्त्विति विघ्नः ॥
व्योमगैरिति रजोम्बरमेतद्, दिक्सरोरुहदृशां चकृषे द्राक् । • प्रत्यदायि करिभिः पुनरासां नागजाम्बर मिव श्रुतिकीर्णम् ॥
विद्याधरों ने जल बरसा कर दिशां रूपी अंगनाओं के रज रूपी वस्त्र को खींच लिया और बदले में हाथियों के कानों से बिखरे हुए सिन्दूर का वस्त्र उन्हें दे दिया ।
१५.
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१४. प्रक्षरन्मदजलैर्गज राजैजतिरूपमयमण्डनकान्तः । विद्युदन्तरचरैरिवमेधैरुन्नतत्वपरिचारिभिरीये ॥
ऊँचे होकर चलने वाले गजराज आगे बढ़े। उनके गंडस्थल से मद भर रहा था । वे स्वर्णमय मंडन की कांति के कारण ऐसे सुंदर लग रहे थे जैसे विद्युत् के बीच में विचरण करने वाले मेघ सुंदर लगते हैं ।
राजलोकनकृते समुपेतं भामिनीभिरधिकत्वरिताभिः ।
लोचनास्य कमलाभिरिताभिः ', फुल्लपद्मदलमानसशोभाम् ॥
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१. अन्तरोद्यतं ---- अन्तरा – मध्ये, उद्यतं – उड्डीयमानं ।
२. बलविलोकनशौण्डः – सेनानिभालनदक्षः ।
३. नः - अस्माकम् ।
४. दिक्सरोरुहदृशां - - आशाङ्गनानाम् ।
५. नागजाम्बरं—सिन्दूररूपवस्त्रम् (नागजं - सिन्दूरं नागजं – अभि० ४। १२७ ।)
६. श्रुतिकीर्णम् – कर्णतालविक्षिप्तम् ।
७. भामिनी के दो अर्थ हैं - सुन्दर स्त्री या कुपित स्त्री ( सा कोपना भामिनी स्यात् - अभि० ३।१७४) पंजिकाकार ने इसका अर्थ - पौरवधूएं किया है ।
८. इताभिः - प्राप्ताभि;