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________________ षष्ठः सर्गः पास में चल रहे हाथियों की कतार को देखकर कुछेक घोड़े, तीव्रगामिता के कारण भूमि का स्पर्श छोड़कर पंख फैलाए हुए पक्षियों की भांति आकाश में उड़ने लगे। ८. चित्रका'ननहयाधिकभीतः , स्यन्दना मुमुचिरे वृषभाक् । कण्ठकन्दलविलम्बितयोक्त्रः, प्राजन'प्रहरणान्यवमत्य ॥ रथों में बैल जुते हुए थे। वे व्याघ्र के समान मुंह वाले घोड़ों को देखकर भयभीत हो गए। उनकी कंठ-कंदली में 'जोति, (नाधा-चर्म-रज्जु) बंधी हुई थी। चाबुक के प्रहारों की अवमानना करते हुए वे झटपट रथों को छोड़कर भाग गए। ६. पत्तिभिः क्वचन शौर्यरसोद्यत्कुन्तलः कलितकुन्तकराः । मूर्ततामधिगतैरिववीर्येर्दीप्यतेस्म लहरीभिरिवाब्धेः ॥ कहीं-कहीं वीर रस से रोमाञ्चित केशवाले तथा हाथों में भाले लिए हुए पैदल सैनिक ऐसे शोभित हो रहे थे मानो समुद्र की लहरियों की भांति उनका पराक्रम मूर्तिमान हो गया हो। १०. सिंहनादमुखरैरिहवीरेस्त्रासिता मदभरालसनागाः।। तः कुरङ्गनयनाश्च विहस्तास्ताभिरुत्ससृजिरे शिशवोऽपि ॥ वीरों के मुंह से सिंहनाद हो रहा था। उन्हें सुनकर मद के भार से अलसायी गतिवाले हाथी भयभीत हो गए। हाथियों के त्रस्त होने पर स्त्रियां भी व्याकुल हो उठीं और उन्होंने अपने पास रहे बच्चों को छोड़ दिया। ११. खेचरैरपजहें नपमार्गः , संकुल स्त्रिदशवम जगाहे। नाकिखेचरविमानविहारैस्तैश्च तत्र घनसङ्कटतोहे" ॥ १. चित्रकः व्याघ्र (व्याघ्रो द्वीपी शार्दूलचित्रको–अभि० ४।१५१) २. योक्त्रं-जोती या नाधा (योनं तु योक्त्रमाबन्धः-अभि० ३।५५७) ३. प्राजनं-चाबुक (प्राजनं तोनतोदने-अभि०३।५५७) ४. कलित.......-कलितो—गृहीतो भल्लो येन तत् कलितकुन्तं, कलितकुन्तं कराग्रं येषां ते, तैः । ५. मदभरालसगतयो नागा इति शाकपार्थिवादि मध्यमपदलोपी समासः । ६. कुरङ्गनयना:--स्त्रियः । ७. विहस्त:-व्याकुल (विहस्तो व्याकुलो व्यग्र:-अभि० ३।३०) ८. संकुल:-चतुरङ्गसेनासंचारबाहल्यात संकीर्णः। ६. त्रिदशवर्त्म-त्रिदशानां देवानां, वर्त्म-मार्ग:-~-आकाशः । १०. घनसङ्कटमूहे-इत्यपि पाठः । ऊहे इति वहन प्रापणे धातोः रूपं । ऊहे प्राप्ता।
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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