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________________ ११४ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् २०. कापि मत्तकरिणीश्वरभीत्या , कान्तमेव निबिडं परिरेभे । - क्रष्टुमान्तरमिवोरुभयं द्राक् , सन्निवेष्टुमिव वक्षसि कामम् ॥ किसी सुन्दरी ने मत्त हाथी के भय से अपने पति का गाढ़ आलिंगन कर लिया। मानो कि वह अपने अन्दर रहे हुए विपुल भय को बाहर करने के लिए तथा कामदेव को अपने हृदय में स्थापित करने के लिए ऐसा कर रही हो। २१. कन्दुकोप्यनुकृतस्तनलक्ष्मीर्हन्यते किल करेण यथाऽयम् । हस्तिनां गतिरदायि तथैवास्माभिरेवमपसस्र रिभात् ताः॥ गेंद हमारी स्तनलक्ष्मी का अनुकरण करती है इसलिए हम उसे हाथ से उठाकर फेंक देती हैं। हमने हाथियों से गति ली है। वे अपनी सूंड से उठाकर हमें फेंक न डालेंयह सोचकर स्त्रियाँ हाथियों से दूर हो गईं। . २२. कुम्भिनां प्रसरदच्छवसितानामुत्पतिष्णकरशीकरवारैः। - तारतारकित'मम्बरमासीत् , पांसुसंतमसनीतनिशीथे ॥ हाथियों के विपुल उच्छवास के कारण उनकी सूंड से ऊपर उछलने वाले जलकणों के समूह से उठे हुए रजःकण रूपी अन्धकार से व्याप्त रात्रि में सारा आकाश निर्मल मौक्तिक रूपी तारों से भर गया। २३. संचरबलरजोनिकुरम्बैश्चुम्बिताम्बरपथैः परितेने। संभ्रमाज्जगदपीरयदेतद् , भानुमानपरशैल मितः किम् ? संचरण करनेवाली सेना से ऊपर उठे हुए रजःकण सारे आकाश में व्याप्त हो गए। संभ्रमित होकर प्राणियों ने ऐसी वितर्कणा की कि क्या सूर्य अस्ताचल पर्वत पर चला गया है ? २४. भूवरोपरिपुरःप्रसरभिः , छत्रचक्रमहसां समुदायैः । शर्वरीदिवसनायकयोगाद् , दर्श'एव समयोऽभवदेषः ॥ १. 'अदायि'—यह प्रयोग चिंतनीय है । इसके स्थान पर 'आदायि' होना चाहिए। २. उत्पतिष्णु ......-उत्पतनशीलशुण्डादण्डसंबंधिछटासंदोहैः। ३. तारतारकितं-निर्मलमौक्तिकरूपताराढ्यम् । ४. निशीथः–आधीरात (निशीथस्त्वद्धरात्रो महानिशा-अभि० २।५६) ५. अपरशैल:-अस्ताचल पर्वत। ६. दर्श:-सूर्य और चांद का संगम-काल (दर्शः सूर्येन्दुसङ्गमः-अभि० २।६४ ),
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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