SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठः सर्गः १. राजमार्गमतिलभ्य गवेन्द्रः, स्वर्गलोकमिव सत्कमनीयम् । सङ्गतं सुमनसां समुदायर्गोपुरं वितततोरणमापत् ॥ चक्रवर्ती भरत राजमार्ग को पार कर नगर के द्वार पर पहुँचे । वह स्वर्गलोक की भांति अत्यन्त सुन्दर तथा फूलों के समूह और विस्तृत तोरण से युक्त था । २. तारकरिवनपैरनुजग्मे , स्मेरतां विदधदारुचि' राजा। कौमुदं नृपतिवम विहायोभ्राजिभिः कलितकान्तिविशेषैः ॥ जैसे आकाश में देदीप्यमान और विशेष कांति से युक्त तारे चन्द्रमा का अनुगमन करते हैं वैसे ही महाराज भरत के सामन्तराजे यथेष्ट प्रफुल्लता को धारण करते हुए पृथ्वी के लिए आनन्ददायी राजमार्ग पर राजा भरत का अनुगमन कर रहे थे। ३. - सेनयाथ तमनुप्रसरन्त्या , ज्योत्स्नयेव रजनीशमयन्त्या। पौरलोचनचकोरविवृद्धानन्दयाभ्यधिकमत्र दिदीपे ॥ जैसे चन्द्रमा के पीछे-पीछे चांदनी चलती है वैसे ही नगरवासी लोगों के नयन-चकोर को अत्यधिक आनन्दित करने वाली सेना महाराज भरत के पीछे-पीछे चल रही थी। उससे वह राजमार्ग अधिक दीप्त हो रहा था। १. पंजिकाकार ने सब विशेषणों को राजमार्ग के लिए प्रयुक्त किया है । हमने उन्हें 'तोरण' ___ के विशेषण माने हैं। २. नृपः-सामन्तभूपः । ३. आरुचि-रुचि अभिलाषं मर्यादीकृत्य, आरुचि-यथेष्टम् इत्यर्थः । ४. राजा-चन्द्रमा। ५. कौमदं-को-पृथिव्यां, मुदं-हर्ष । चन्द्रमा पक्षे–कौमुदं–कुमुदां समूहं । ६. नृपतिवर्त्म-राजमार्ग। . .
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy