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________________ . भरतबाहुबलिमहाकाव्यम .:५. दृशमथाक्षिपदुल्वणसञ्चरन्द्रिपुविपत्तिषु पत्तिषु सैन्यपः । कटकरापितखङ्गधनुष्वसौ , गुरुकलापकलापविराजिषु ॥ तब सेनापति ने शत्रुओं के लिए स्पष्ट आती हुई विपत्ति रूप अपनी सेनाओं पर एक दृष्टि डाली । सेना के सुभटों के हाथों में खड्ग और धनुष थे। वे सेनाएँ विशाल तूणीरों के समूह से शोभित हो रही थीं। ६. इति चमूमवलोक्य चमपतिः , प्रगुणितां गुणितान्तक विग्रहाम् । नृपतिमेवमुवाच तनूभवद्रसमयः समयः शरदस्त्वयम् ॥ सेनापति ने सुसज्जित और बाहुबली के साथ युद्ध करने की इच्छुक सेना को देखकर •महाराज भरत से कहा-'राजन् ! यह शरद ऋतु का समय अल्प. पानी वाला होता है। ७. शरदपति विधातुमनन्तरं , शभवतो भवतो विनिषेवणम । विकचवारिरुहाननशालिनी , विकलहं कलहंसशुचिस्मिता ॥ ‘विकसित वृक्षों के आनन वाली और कलहंसो की भांति विशुद्ध मुस्कान वाली यह शरद्ऋतु पुण्यशाली आपकी प्रेम-भाव से सेवा करने के लिए आ रही है। ८. अरिषु ते महसा सममुग्रता , शरदि नार दिनाधिपधाम किम ? वितनुते च गति तव गाधतः , सुरवहा रवहारिसितच्छदा ॥ शरद् ऋतु के समय वैरियों में आपके तेज के साथ-साथ क्या सूर्य का तेज तीव्र नहीं हो जाता ? तथा तटों पर स्थित हंसों के शब्दों से मनोज्ञ गंगा उस समय अगाध न होने के कारण आपकी गति में सहायक होगी। ६. सुरभिगन्धिविकस्वरमल्लिकावनमहीनमहीन! विराजते । किममुनेति ददत् परितकणं , न विषमा विषमायुधपत्रिणः ॥ हे अखंड भारत के स्वामिन् ! इस ऋतु में सुगन्धित और विकसित मल्लिका के वन शोभित होते हैं । ये पुष्पित वन यह तर्कणा उपस्थित करते हैं कि क्या इन मल्लिका के वनों से कामदेव के वाण विषम नहीं हो जाते ? अवश्य होते हैं। .१०. अहनि चित्तमुपास्यति कामिनां , कमलिनीमलिनीकुलसंश्रिताम् । जलदमुक्ततया निशि निर्मलं , सितरुचं तरुचञ्चिरुचं पुनः ॥
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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