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कथावस्तु -
महाराज भरत ने सेना को सज्जित होने का आदेश दिया और सेनापति से कहा - 'हमें बाहुबली के साथ युद्ध लड़ना है। मालव, मगध, जांगल, कुरु, लाट, कच्छ, सिन्धु और किरात के राजाओं को अपनी-अपनी सेनाओं के साथ यहाँ बुला लो । साथ ही साथ दूसरे राजाओं के पास भी दूतों को भेजो और उन्हें यहाँ बुला लो । विद्याधर भी अपने-अपने विमानों के साथ यहाँ आ जाएँ । सेनापति सुषेण ने अपने निपुण दूतों को चारों ओर भेज दिया । सारे राजे अपनी-अपनी सेनाओं के साथ वहां अयोध्या में आ पहुंचे । महाराज भरत शस्त्रागार में गए और शस्त्रों की विधिवत् पूजा कर अपने प्रासाद से बाहर निकले । उनके आगे-आगे चक्र चल रहा था । उससे उठने वाले स्फुलिंगों से आकाश में स्थित देवांगनाएँ त्रस्त हो रही थीं ।