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________________ भरतबाहुबलिमहाकाव्यम् प्रभो ! तीनों लोक में ऐसा कोई देव, किन्नर, मनुष्य या विद्याधरेन्द्र नहीं है जिसने आपके आदेशरूपी कमल को शिर पर धारण न किया हो । ४३. तदियं तवका सरस्वती , बलवान् बाहुबलिययोच्यते । - इतराद्रिमहोन्नतत्त्वतः , किमु नीचोत्र सुपर्वपर्वतः ? आपकी यह क्या वाणी है कि आप बाहुबली को बलवान् बता रहे हैं। दूसरे पर्वतों की बहुत ऊंचाई होने पर भी क्या मेरु पर्वत नीचा हो जाता है ?. . ४४. विजितस्तव बान्धवत्वतो , न हि केनापि महीभुजा त्वयम् । कलया किल' सूर्यदत्तयाऽधिकदीप्तिर्भवतीह चन्द्रमाः ॥ बाहबली आपका भाई है, इसलिए इसको किसी राजा ने नहीं जीता । यह विश्रुत है कि सूर्य द्वारा प्रदत्त कला से चन्द्रमा अधिक दीप्तिवाला होता है। ४५ अनुजस्तव बान्धवो बली , यदि सीमन्तकभरेरिव। विभवत्यथ कि न तमु सौ, चतुराशान्तजयी भवानिव ॥ आपका छोटा भाई बाहुबली इन्द्र के छोटे भाई विष्णु की तरह यदि बलशाली है तो क्या वह चारों दिशाओं को जीतने में आपकी भाँति समर्थ नहीं हो जाता ? ४६. प्रथमं भवदत्युपेक्षणाद् , वृषकेतोस्तनयत्वतः पुनः । बलवानिति सर्वथा प्रथाऽभवदस्य स्मयवानयं ततः ॥ प्रभो ! पहली बात यह है कि आपकी अति उपेक्षा होने तथा दूसरे में ऋषभ का पुत्र होने के कारण 'बाहुबली बलवान् है'—सर्वत्र ऐसी प्रसिद्धि हो गई है। इसलिए वह अहंकारी हो गया है। ४७. अयमीश्वर एकमण्डले , भरते त्वं पतिरस्तशात्रवः । बलरिक्तबलातिरिक्तयोरिदमेवास्ति सदन्तरं द्वयोः ॥ बाहुबली एक मंडल का राजा है और समस्त शत्रुओं को अस्त करने वाले आप समूचे १. किल श्रूयते । २. अर्थ की दृष्टि से यहाँ 'स्यमन्तकभृत्' होना चाहिए । 'स्यमन्तक"भगवान विष्णुके हाथ में रही मणि का नाम हैं । (अभि० २।१३७--मणिः स्यमन्तको हस्ते)
SR No.002255
Book TitleBharat Bahubali Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishwa Bharati
Publication Year1974
Total Pages550
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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