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७५.
चतुर्थः सर्गः
कौन कर सकता है ? वे हरिण और वडवानल के कारण अयश को प्राप्त होते हैं, फिर भी उन्हें नहीं छोड़ते ।
१६.
जो व्यक्ति स्वजनों के गुणहीन होने पर भी उन्हें नहीं छोड़ता, वही गम्भीर है । उसमें ही सारी सम्पदाएँ निवास करती हैं । उथले में अमृत नहीं होता ।
२०.
२१.
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अगुणानपि नोति स्वकान् स हि गम्भीरिमसंश्रितः पुमान् । निवसन्ति तदत्र संपदो, ह्यमृतं तिष्ठति नागभीरके ॥
जो राजा स्वयं अपने निजी व्यक्ति को मारकर पश्चात्ताप करता है, वह निन्दा को प्राप्त होता है । जो नदी का प्रवाह तटवर्ती वृक्षों को धराशायी कर देता है, क्या वह तट को प्रकाशित नहीं करता ?
२२.
स्वयमेव निजं निहत्य योऽनुशयीतैति स निन्दनीयताम् ।
तटशाखिनिपातनाद् रयः सरितः किं न तटं प्रकाशयेत् ?
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२३.
स विभुः किमिहावनेर्मतः स्वपरौ वेत्ति हिताहितौ न यः ॥
स्वपरानवबोधहेतुतो न हुताशं किल कोपि संस्पृशेत् ॥
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इस भूमंडल पर क्या वह स्वामी के रूप में मान्य हो सकता है जो 'स्व' और 'पर' तथा 'हित' और 'अहित' को नहीं जानता ? अग्नि में 'स्व' और 'पर' का अवबोध नहीं होता, इसलिए उसका कोई भी स्पर्श नहीं करता, नहीं छूता ।
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तरसैव न केवलं विभोर्मतिमत्ताधिकवृद्धिमश्नुते ।
तरसोपि मतिः प्रवर्धते, तदुदीर्णोत्र धियैव धोधनः ॥
स्वामी की मतिमत्ता केवल बल से ही अधिक वृद्धि को प्राप्त नहीं होती । बुद्धि शक्ति से बड़ी है । बुद्धि के कारण ही अमात्य 'धीधन' कहलाता है ।
कुलकेतुरिहोच्यते स यः स्वकुलं रक्षति सर्वथापदः ।
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प्रियबन्धुभि हि यूपोऽधिकशक्तिर्हरिरेक एव यत् ॥
वही पुरुष कुल-केतु (कुल का मुखिया) कहलाता है जो आपदाओं से अपने कुल की सर्वथा रक्षा करता है । हाथी प्रियबन्धु (अपने बन्धुत्रों में प्रिय) होने के कारण यूथपति होता है। सिंह उससे अधिक शक्तिशाली होता है परन्तु प्रियबन्धु नहीं होने के कारण वह अकेला रहता है।