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बन्धु बाहुबली सम्बन्धी मेरी इस प्रगाढ़ प्यास को वे शान्त नहीं कर सकते ।
१४.
१५.
मैं भी बाहुबली से बहुत दूर रहा और वह भी मेरे से दूर रहा। पिताश्री ने हमें केवल शरीर से ही पृथक् किया है, हृदय से नहीं ।
भरतबाहुबलिमहाकाव्यम्
१६.
श्रहमप्यभजं दविष्ठतां, किल तेनापि विदूरतः स्थितम् । वपुषैव पृथक्कृतावुभाविति तातेन हवा च नौ न हि ॥
हम दोनों के बीच समुद्र, विषम पर्वत और जल से परिपूर्ण नदी भले ही हो किन्तु चुगलखोर हमारे बीच कभी न आए ।
१७.
भवतात् तटिनीश्वरोन्तरा, विषमोऽस्तु क्षितिभूच्चयोन्तरा । सरिवस्तु जलाधिकान्तरा, पिशुनो माऽस्तु किलान्तरावयोः ॥
समुद्र आदि के बीच में आ जाने पर परस्पर का प्रेम क्षीण नहीं होता, किन्तु चुगलखोर के बीच में आने पर वह क्षीण हो जाता है । अतः प्र ेम को क्षीण करने की दिशा में चुगलखोर समुद्र से बड़ा है ।
१८.
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प्रणयस्तटिनीश्वरादिकैः पतितैरन्तरयं न हीयते । पिशुनेन विहीयते' क्षणादधिकः सिन्धुवसद्धि मत्सरी ॥
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पचीयत एव संततं वयसा सार्धमिहासुमदेवपुः । हृदयानिलब्धसंभवः, प्रणयः सज्जनयोर्न हि क्वचित् ॥
प्राणियों का शरीर अवस्था के साथ-साथ निरन्तर क्षीण होता जाता है किन्तु सज्जन व्यक्तियों का प्रेम, जो हृदय की भूमि में अंकुरित होता है, कभी क्षीण नहीं होता ।
द्विजराजनदीयोस्तुलां हरिणौवा दधतोरवर्णदी ।]
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लभते क इहाऽयशोपि तौ, धरतो नोज्झत एव तो परम् ॥
अवर्णदायी हरिण, वडवानल को धारण करनेवाले चन्द्रमा और समुद्र की तुलना
१. विहीयते - न्यूनीक्रियते ।
२. प्रपचीयते - इत्यन कर्मकर्तृ ' त्वमवसातव्यम् ।
३. द्विजराज : - चन्द्रमा । नदीशः - समुद्र ।
४. प्रौर्वः - वडवानल ( श्रर्वः संवर्त्तकोऽब्ध्यग्निर्वाडवो - प्रभि ० ४।१६६)