SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय २ ६७ पंचेन्द्रिय सम्यग्दृष्टि जीव के चार प्रकार की क्रिया होती है ।' अन्य जो चार क्रियाएँ हैं वे हो भी और न भी हो। इसके अलावा एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय के जीवों के पांचों ही क्रियाएँ होती है। सम्यग्दृष्टि मिथ्यात्वप्रत्यया क्रिया नहीं करता क्योंकि मिध्यात्व का त्याग होने पर ही सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है । निसर्ग व अभिगम सम्यग्दर्शन के भी दो-दो भेद है - प्रतिपातीं और अप्रतिपाती । सूत्रकार ने आगे सराग सम्यग्दर्शन के दस भेद किये हैं१. निसर्गरुचि, २. उपदेशरुचि, ३ . आज्ञारुचि, ४. सूत्ररुचि, ५. बीजरुचि ६. अभिगमरुचि, ७. विस्ताररुचि, ८. क्रियारुचि, ९. संक्षेपरुचि, १०. धर्मरुचि । ४ प्रज्ञापनासूत्र में एवं उत्तराध्ययन सूत्र में भी इन दस प्रकार की रुचियों का विस्तार से वर्णन किया गया है । ' दर्शन के भेद बताकर ग्रन्थकार कथन करते हैं कि सभी जीवों के तीन प्रकार हैं- सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि | इन तीन दृष्टियों में कौन कौनसा जीव किस दृष्टि से युक्त हो सकता है, इसका भी ग्रन्थकार ने उल्लेख किया है । चौबीस दण्डकों में स्थित जीवों की दृष्टि का कथन करते हुए कहा है कि '१ देखो - चउत्थं ठाणं उद्दे० चउत्थो सू० ६१८-२०, पृ० ४७५ ॥ २. देखो - पंचमं ठाणं, बीओ उद्दे०, स्र० ११३-११४, पृ० ५८१ । ३. सम्म दुबिहे पण्णत्ते, देखो-बीअं ठाणं, पढमो उद्दे० ०८०८२, पृ० ४८ ॥ ४. दसविधे सरागसम्म हंसणे पण्णत्ते, तं जहा - निसरगुवएसरुई, आणारुई सुत्तबीयरुई मेव । अभिगम वित्थार रुई, किरिया संखेव धम्मरुई || - दसमं ठाणं सृ० १०४, पृ० ९३१ ५. प्रज्ञापना सूत्र, गाथा १०९-११०, उत्तराध्ययनसूत्र, अ० २८, गा० १६ ।। ६. तिविहा सब्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा सम्मद्दिट्ठी, मिच्छा हिट्टी सम्मामिच्छाद्दिट्ठी - तइयं ठाणं, बीओ उद्दे० सू० ३१८, पृ० २१३ ।।
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy