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जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप दर्शन तीन प्रकार का-सम्यग्दर्शन, मिथ्यादर्शन और सम्यग्मिथ्यादर्शन ।'
दर्शन सात प्रकार का-सम्यग्दर्शन, मिथ्यादर्शन और सम्यग्मिथ्यादर्शन, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन । यहाँ ये सात प्रकार के भेद श्रद्धावाची दर्शन और ज्ञानवाची दर्शन के सम्मिलित रूप से किये गये है। ___दर्शन का वर्गीकरण कर अब सम्यग्दर्शन का वर्णन करते हैंसम्यग्दर्शन २ प्रकार का है- १. निसर्ग सम्यग्दर्शन, . २. अभिगम सम्यग्दर्शन । पंचमांग भगवतीसूत्र में यह वर्णन विस्तार से किया गया है।
यहाँ यह स्पष्ट होता है कि द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव सम्यक्त्व के अधिकारी हो सकते है। सभी जीवों के द्वारा २ प्रकार की क्रिया की जाती है-१. सम्यक्त्व क्रिया, २. मिथ्यात्व क्रिया।' - चौबीस दण्डकों में सम्यग्दृष्टि आदि जीवों की क्रियाएँ कैसी होती है ? यहाँ उसका उल्लेख किया है। इन क्रियाओं के देखने से हमें यह ज्ञात होता है कि जिसका जैसा विचार होता है, उसकी वैसी ही क्रिया होती है। दृष्टि के अनुसार क्रियाओं में भिन्नता आना स्वाभाविक है। १. तिविहे सणे पण्णत्ते, तं जहा-सम्मइंसणे, मिच्छाइंसणे, सम्मामि
च्छदंसणे। तइयं टाणं, तइओ उददे०, सू० ३९२, पृ० २३१ ॥ २. सत्तविहे दंसणे पण्णत्ते, देखो-सतमं ठाणं सू० ७६, पृ० ७३६ ।। ३. भगवतीसूत्र, शतक २४, उद्दे० १२, पृ० ३०६४, शतक १९, उद्दे० ३ पृ० २७७२; शतक ११, उदे० १, पृ० १८५०; शतक २०, उद्दे० १, पृ० २८२८; शतक ३६, उद्दे० १, पृ० ३७५२; शतक १, उद्दे २, पृ० १२२; शतक १, उद्दे० २, पृ. १३५, शतक १, उद्दे॰ २, पृ० १४२ ॥ ४. जीव किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सम्मत्तकिरिया चेव, मिच्छत्त. किरिया चेव-ठाणं बीअं ठाणं, पढमो उद्दे० सू० ३, पृ० ३६ ।।