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________________ अध्याय २. औपशमिक भाव है।' ___मोहनीय कर्म का उपशम, उपशम श्रेणी में होता है, इसलिए मोहनीय कर्म का उपशम रूप औपशमिक भाव होना कहा गया है। उपशम निष्पन्न से अभिप्राय है कि मोहनीय कर्म के उपशम से दर्शन मोहनीय और चारित्रमोहनीय दोनों ही उपशांत हो जाते हैं। अब सूत्रकर्ता क्षायिक भाव का निरूपण करते हैंक्षायिक भाव क्या है ? क्षायिक भाव दो प्रकार का है१. क्षय रूप क्षायिक, २: क्षय निष्पन्न । आठ प्रकृतियों का जो क्षय है, वह क्षायिक है और क्षयनिष्पन्न क्षायिक भाव अनेक प्रकार का है यथा-क्षीण दर्शनमोहनीय, क्षीण चारित्रमोहनीय, अमोह, निर्मोह, क्षीणमोह इस प्रकार मोहनीय कर्म से विप्रमुक्त बने हुए जीव के ये नाम हैं। : अमोह, निर्मोह और क्षीणमोह-ये नाम भी मोहनीय कर्म के अभाव में होते हैं । अर्थात् मोहनीय कर्म से जो अपगत है वह अमोह, इसी कारण निर्मोह है। कालांतर में मोहोदय से युक्त बन · सकता है इस आशंका को निर्मूल करने के लिए क्षीणमोह पद रखा है। • . अब क्षायोपशमिक भाव का कथन है .. १.से किं तं उसमिए ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा. उसमे व उवसम'निष्फण्णे य । उवसमे मोहणिज्ज कम्मरस उवसमेण । उवसमनिष्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा उपसंत दंसणमोहणिज्जे, उवसतमोहणिज्जे उवस मिया सम्मत्तलद्धी' अनु० गा० २३९-२४१, पृ० १०९।। २. से किं तं खइए ? दुविहे पण्णत्ते । तं जहा-खए य खय-निप्फण्णे य । अट्टण्हं कम्मपगडीण खएणं । खय निप्फणणे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहाखीण दंसणमोहणिज्जे खीण चरित्तमोहणिज्जे अमोहे निम्मोहे खीणमोहे मोहणिजकम्मविप्पमुक्क"। -अनु० गा० २४२-४४, पृ० १०९ ॥
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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