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अध्याय २ • हो भी और न भी ।"
इस प्रकार द्वादशांग गणिपिटक को सूत्रकार ने सम्यक् श्रुत कहा है। मिथ्याश्रुत क्या है ? उसके लिए कहा है-" मिथ्याश्रुत अल्पज्ञ मिथ्या दृष्टि और स्वाभिप्राय बुद्धि व मति से कल्पित किये हुए जो भारत रामायण....नाटकादि ग्रन्थ हैं अथवा बहोत्तर कलाएं, चार वेद अंगोपांग सहित हैं, ये सभी मिथ्या दृष्टि के मिथ्यारूप में ग्रहण किये हुए मिथ्याश्रुत हैं ।"२ __इस प्रकार सम्यग्दृष्टि की रचना सम्यक्त तथा मिथ्यादृष्टि की रचना मिथ्याश्रुत है। उसके बावजूद भी ग्रन्थकर्ता का कथन है कि
मिथ्यादृष्टि द्वारा रचित श्रुत सम्यग्दृष्टि के लिए सम्यक्श्रुत ही है क्योंकि सम्यग्दृष्टि के सम्यक्त्व रूप में ग्रहण होने से सम्यक् श्रृंत है।'
साथ ही मिथ्यादृष्टि के भी यही ग्रन्थशास्त्र सम्यक्श्रुत हैं, क्योंकि ये उनके सम्यक्त्व में हेतु हैं, जिससे कई एक मिथ्यादृष्टि उन ग्रन्थों १. " से किं तं सम्मसुअं ? सम्मसुअं जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्प. • ण्णणाण दंसणधरेहि-सवण्णूहिं सव्वदरिसीहिं पणीय दुवालसंगं
गणिपिडग, तं जहा आयारो, सूयगडो, ठाणं, समवाओ, विवाहपण्णत्ती, णायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अन्तगडदसाओ, अणुत्तरोववाइय. दसामओ, पाहावागरणाई, विवागसुयं, दिट्ठिवाओ। इच्चेयं दुवालसंग गणिपिडगं चोदसपुव्विस्स सम्मसुयं, अभिण्णदसपुस्विस्स सम्मसुयं, तेण परं भिण्णसु भयणा ॥"
___ -नंदीसूत्र, सूत्र ४१, पृ. २६१ ॥ २. “मिच्छसुयं 5 इमं अण्णाणिएहि मिच्छद्दिट्ठीहि सच्छंदबुद्धिमतिविय प्पियं, तं जहा-भारहं, रामायणं...णाडगादि। अहवा बावत्तरि कलाओ चत्तारि य वेदा संगोवंगा। एयाई मिच्छद्दिट्ठिस्स मिच्छत्तपरिग्गहियाई मिच्छसुयं,"
-सूत्रः ४१-४२, पृ० २६५-२६६ ॥ ३. “पयाणि चेव सम्महिट्ठिस्स सम्मत्तपरिग्गहियाई सम्मसुयं" ॥बही।