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अध्याय २
दृष्टि सम्यग्दर्शन की प्राप्ति किस प्रकार करता है। अध्यावसायों अर्थात् विचारों या परिणामों की बिशुद्धि एवं कषायों की उपशांतता होने पर सम्यक्त्व उत्पन्न होता है।
. एक बात और ध्यान आकर्षित करती है वह यह कि सम्यक्त्व -प्राप्ति के पश्चात् ही विभंग अज्ञान का परिणमन अवधिज्ञान रूप हो जाता है। स्पष्ट है कि सम्यग्दर्शन से पूर्व सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती।
इस प्रकार भगवती सूत्र में सम्यक्त्वविषयक विचार व विकास पाया जाता है । यहाँ यह स्पष्ट उल्लेख है कि
(१) सम्यग्ज्ञान सम्यग्दर्शन पूर्वक होता है। (२) सम्यक्त्व का अवरोधक दर्शन-मोहनीच कर्म है।
(३) सम्यक्त्व का अधिकारी कौन कौन सा जीव हो सकता है। (५) नंदी-अनुयोगद्वार .
नंदीसूत्र . . यद्यपि नंदीसूत्र चूलिका सूत्र है, किन्तु आगम वाचना के 'प्रारंभ में सर्वप्रथम नंदी को ग्रहण किया जाता है। चूंकि कल्याण"विजय जी देववाचक और देवर्द्धि को एक ही व्यक्ति मानते हैं अतः
इन का समय वीर निर्वाण २८० वां वर्ष मानते हैं। जबकि नंदी सूत्र .का उल्लेख विशेषावश्यक, आवश्यकनियुक्ति, भगवतीसूत्र में आता है
अतः इन का समय पूर्व का होना चाहिये । अतः विक्रम संवत् ५२३ से पूर्व इस की रचना मानी जा सकती है। इसके रचयिता देववाचकजी है।
____ नंदीसूत्र का विषय ज्ञान है। सम्यग्ज्ञान सम्यग्दर्शन का पश्चात् . वर्ती है । सम्यक्त्व का इसमें स्पष्ट उल्लेख तो नहीं है किन्तु सम्यक् १. प्रस्तावना, नंदीसुतंअणुओगद्दाराइं च, पृ० २३ ॥ २. वही, पृ० ३२-३३ ॥