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________________ अध्याय २ तो उत्तर है - गौतम ! केवल आदि के पास सुने बिना कुछ जीव शुद्धबोध को प्राप्त करते हैं और कितनेक जीव शुद्ध बोधि को प्राप्त नहीं करते । पुनः प्रश्न है कि भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा गया कि यावत् शुद्ध बोध को प्राप्त नहीं करते ?' 66 गौतम ! जिस जीव ने दर्शनावरणीय ( दर्शनमोहनीय) कर्म का क्षयोपशम किया है, उस जीव को केवलि आदि के पास सुने बिना भी शुद्ध बोधि का लाभ होता है और जिस जीव ने दर्शनावरणीय का क्षयोपशम नहीं किया, उस जीव को केवल आदि के पास सुने बिना शुद्ध बोधि का लाभ नहीं होता। इसलिये हे गौतम सु बिना शुद्ध बोधि लाभ नहीं करते । यहाँ बोधि सम्यक्त्व से अभिप्रेत हैं । मिथ्यादृष्टि जीव सम्यग्दृष्टि किस प्रकार होता है ? उस संबंध में उल्लेख हैं - निरंतर छठ - छठ का तप करते हुए सूर्य के संमुख ऊँचे हाथ करके आतापना भूमि में आतापना लेते हुए, उस जीव के प्रकृति की भद्रता, प्रकृति की उपशान्तता, स्वभाव से ही क्रोध, मान, माया १. असोच्चा णं भंते ! केवलिस्स वा जाव तथाविखय उवासियाए वा xxxx केवलं बोहि बुझेज्जा ? गोयमा ! असोच्चा णं केवलिस्स बा • जाव अत्थेगइए केवलं बोहिं बुज्झेज्जा, अत्थेगइए केवलं बोहिं णो बुझेजा । से केणणं भंते ! जाव णो बुज्झेजा ? -श० ९, उद्दे० ३१, पृ० १५८९-९० ।। २. जस्स णं दरिसणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमे णो कडे भवइ से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव केवलं बोहिं णो बुझेजा । जस्स णं दरिसणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवर, सेणं असोच्चा केवलिम्स वा जाव केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए, केवलं बोहि बुझेज्जा जाव केवलणाणं उप्पाडेज्जा | - वही, श० ९, उद्दे० ३१, पृ० १५८९-९० ॥
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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