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________________ ४२ जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप १०. धर्मरुचि-जिनेश्वर प्ररुपित अस्तिकाय, धर्मास्तिकाय आदि धर्म की . श्रुतधर्म और चारित्रधर्म पर श्रद्धा करे उसे धर्मरुचि जानना।' इन दस प्रकार की रुचियों का वर्णन प्रज्ञापना सूत्र में दर्शनायों के अन्तर्गत किया है । यहाँ हमें यह विदित होता है कि किसी रुचि में 'श्रद्धा' शब्द प्रयुक्त हुआ है तो कहीं कहीं 'सम्यक्त्व' शब्द का. उपयोग किया गया है। अतः सम्यक्त्व का श्रद्धा पर्यायवाची नाम द्योतित होता है। इस प्रकार यहाँ सम्यक्त्व का स्वरूप श्रद्धान बताकर, वह श्रद्धान किस प्रकार से हो सकता है उसे दस प्रकार की रुचि के : माध्यम से होना बताया है। इस के पश्चात् सूत्रकार दर्शनाचारों का वर्णन करते हैं निःशंकित, निःकांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपबंहण, स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना ये आठ (दर्शनाचार) हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि उत्तराध्ययन सूत्र में सम्यक्त्व विषयक विचारणा विस्तृत रूप से की गई है, तथा उत्तरोत्तर विकास की विशद सामग्री इस में उपलब्ध होती है। विशेषकर सम्यक्त्व का स्वरुप क्या है ? यह इस ग्रन्थ में स्पष्ट हो जाता है तथा सम्यक्त्व को यहाँ निश्चितरूप से मोक्षरूपी प्रासाद का प्रथम सोपान घोषित किया है। साथ ही दस प्रकार की रुचि रूप सम्यक्त्व के दस भेद एवं सम्यक्त्व के अतिचारों का इस में उल्लेख किया गया है। १. जो अत्थिकाय-धम्म, सुयधम्म खलु चरित्तधम्म च। सदहा जिणाभिहियं, सो धम्मरुइ त्ति नायव्यो । वही ॥२७॥ २.निस्संकिय निकंखिय निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्टी य। उववृह थिरी: करणे वच्छल्ल प्रभावणे अट्ट ।-उत्त०अध्ययन २८, गाथा ३१ ॥ एवं प्रशापना सूत्र, गाथा १३२, पृ. ४०, निशीथ सूत्र प्रथम भाग गाथा २३, पृ० १४ ॥
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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