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अध्याय २
४. सूत्ररुचि-जो सूत्रों का अध्ययन करता हुआ अंग या अंगबाह्य • श्रुत द्वारा सम्यक्त्व प्राप्त करे वह सूत्र रुचि है।' ५. बीजरुचि-जीवादि तत्त्व के एक पद की रुचि से अनेक पद के
विषय में जिस का सम्यक्त्व पानी में तेल की बूंद के सदृश
प्रसरता है, वीज रुचि है। ६. अभिगमरुचि-जिसने ग्यारह अंग, पइन्ना और दृष्टिवादरूप श्रुत
ज्ञान अर्थ से जान लिया है वह अभिगम रुचि है।' ७. विस्ताररुचि जिसे सर्वप्रमाण और सर्व नय द्वारा द्रव्यगत सर्व
भाव उपलब्ध है, उसे विस्तार रुचि वाला जानना ।' ८. क्रियारुचि दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय सर्व समिति और
गुप्ति विषयगत क्रिया भाव की जिस की रुचि हो वह क्रिया __ रुचि है। ९. संक्षेपरुचि-जिसने किसी भी कुदृष्टि अर्थात् कुदर्शन का स्वीकार ___ नहीं किया, एवं जिन प्रवचन में भी अकुशल है और अन्य दर्शनों . का जिसे ज्ञान नहीं है, उसे संक्षेपरुचि जानना । १. जो सुनमहिज्जतो, सुरण ओगाहई उ सम्मत्तं ।
अंगेण बाहिरेण व, सो सुत्तई त्ति नायव्वो ॥ वही २१॥ २. एगेण अणेगाई, पयाई जो पसरई उ सम्मत्तं ।
उदए व तेल्लबिंदू, सो बीयरुइ ति नायव्वो ॥ वही ॥२२॥ ... ३. सो होइ अभिगमरुई, सुयनाणं जेण अत्थओ दिटुं।
एक्कारस अंगाई, पइण्णगं दिद्विवाओ य ॥ वही ॥२३।। ४. दव्वाण सव्वभावा, सव्वपमाणेहिं जस्स उवलद्धा ।
सव्वाहिं नयविहीहिं, वित्थाररुइ त्ति नायव्वो। वही ॥२४॥ ५. दंसणनाण चरित्ते, तवविणए सच्चसमिइगुत्तीसु। . जो किरियामावरुई, सो खलु किरियारुईनाम || वही ।.२५॥ ६. अणभिग्गहियकुदिद्धि, संखेवरुइ त्ति होइ नायवो। .
अविसारओ पवयणे, अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥ वही ॥२६॥