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________________ जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप जो जीव सम्यग्दर्शन में अनुरक्त, निदान कर्म से रहित और शुक्ल लेश्या में प्रतिष्ठित हैं उनको परलोक में बोधि प्राप्ति सुलभ होती है।' उत्तराध्ययन सूत्र में सम्यक्त्व के दस भेदों का निरूपण विस्तार के साथ किया गया है । जिन्हें 'रुचि' संज्ञा से अभिहित किया गया है१. निसर्गरुचि-जिनको जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर. इन का स्वरूप स्वाभाविक मति से किसी के उपदेश बिना सत्य रूप से ज्ञात हो गया है और उस पर उनकी श्रद्धा है, वह निसर्ग रुचि है तथा जिनेश्वर द्वारा उपदेशित चार प्रकार के भावों की 'जो कि उसी प्रकार हे अन्यथा नहीं है। इस प्रकार स्वयमेव श्रद्धा करे उसे निसर्गरुचि जाननी चाहिये । २. उपदेशरुचि-जो अन्य छद्मस्थ के या जिनेश्वर द्वारा उपदेशित ___ भावों पर श्रद्धा करे उसे उपदेशं रुचि कहते है। ३. आशारुचि-हेतु को जाने बिना, पर आज्ञा प्रमाण कि 'यही है - अन्यथा नहीं है' इस प्रकार प्रवचन पर रुचि रखने वाला हो तो वह आज्ञा रुचि है। १. मिच्छादसणरत्ता, सनियाणा हु हिंसगा। इय जे मरति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा बोही ॥ सम्मइंसणरत्ता अनियाणा सुक्कले समोगाढा। इय जे मरंति जीवा तेसि सुलहा भवे बोही ।। -वही अध्ययन ३६, गाथा २५८-२५९ ॥ २. भूअत्थेणाधिगया जीवाजीवं य पुण्ण पावं च । . सहसम्मुइयाऽऽसव-संवरो य रोएइ उ निसग्गो । वही अ०२८ ॥१७॥ जो जिणदिटे भावे, चउव्विहे सद्दहाइ सयमेव। एमेव नन्नह त्ति य, स निसग्गरुइ त्ति नायवो ॥ वही ॥१८॥ ३. एए चेव उ भावे, उवइटे जो परेण सहहई । छउमत्थेण जिणेण व, उवएसरुइ ति नायव्यो । वही ॥१९ ४. रागो दोसो मोहो, अन्नाणं जस्स अवगय होइ। .. आणाए रोयंतो, सो खलु आणाई नामं ।। वही ॥२०॥ .
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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